कंपनी देव के दर्शन कर लो न हंसी आयेगी न डर लगेगा-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख
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उस विदेशी अर्थशास्त्री का नाम याद नहीं आ रहा जिसने कंपनी के लिये दैत्य शब्द का उपयोग किया था। विदेशी भी इसलिये बता रहे हैं कि लोग देशी को प्रमाणिक नहीं मानते। बहरहाल वाणिज्य स्नातक की उपाधि धारण करने तक हमें इसका आशय नहीं समझ पाये। इसका मतलब तब समझ में आया जब भारत के समाजवादी सिद्धांतों पर उदारता का बुलडोजर चला और निजीकरण ने अपना विकास पथ बनाना शुरु किया। दरअसल कंपनी एक समूह का नाम होता है जिसे कोई सेठ ही सेवक का नाम रखकर चलाता है।नाम होते है-कहीं मुख्य प्रशासनिक निदेशक कहीं मुख्य प्रबंधक आदि आदि। सबसे ज्यादा अंश इन्हीं सेठों के पास होते हैं-नाम के लिये कुछ अंश सार्वजनिक क्षेत्र में भी बेचे जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में भी बहुत मात्रा में बेचे जाते हैं तो भी सत्ता इन्हीं सेठों के पास होती है। बहरहाल इन सेठों का रूप सेवक के रूप में जरूर दिखता पर व्यवहार तो स्वामी की तरह ही होता है। सारा सफेद काला कंपनी के नाम होता है। सेठ का नाम अधिकतर जनमानस में चर्चा के लियेनहीं आता-चमके तो सेठजी की वह वाह और डूबे तो कंपनी के नाम को बदनामी मिलती है। बाकी सभी वैसे का वैसा ही होता है जैसा निज व्यापार में होता है। अलबत्ता जिनके पास कंपनी है वह आजकल विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में प्रभावशाली लोग होते हैं। उनके सामने राजनेता, फिल्मअभिनेता, पत्रकार और खिलाड़ी नतमस्तक होते हैं।
हमारे देश मेंपहले भारतीय दूरभाष निगम को कंपनी में बदला गया। फिर धीरे इस क्षेत्र में निजीकरण हुआ तो उसके बाद कंपनियों ने अपने पांव फैलाये। लोग खुश हुए क्योंकि सभी के पास मोबाइल हाथ में आ गया पर उन्हें पता ही नहीं चला कि उनकी जेब कैसे कट रही है। अब अगर हम यह कहें कि कंपनी दैत्य ने देवता का मुखौटा लगा लिया है क्योंकि भले ही समाज शास्त्री तथा अर्थशास्त्री यह कहते रहें कि राज्य का दायरा सिमटकर निजी हाथों में जा रहा है तब धनपतियों के जनप्रबंधन में हस्तक्षेप से बचा नहीं जा सकता।
हमने कंपनी दैत्य या देवता का महत्व संक्षिप्त रूप से इसलिये बखान किया ताकि यह बता सकें कि आम जनमानस यह समझ ले कि वह जिन लोगों को अपना मुखिया मानता है उनकी डोर इन्हीं धनपतियों के हाथ में है। हम अक्सर यह सुनते हैं कि यहां या वहां युद्ध होने वाला है या फिर कहीं कोई हमला होने वाला है पर होता कुछ नहीं होता। कुछ दिन पहले हमने लिखा था कि अमेरिका भले ही उत्तरकोरिया को धमका रहा है पर हमला करेगा नहीं। कई दिन की सनसनी के बाद अब अमेरिका ने उत्तरकोरिया से बातचीत की पेशकश की है। भारत और पाकिस्तान में संबंध में भी हमारा मानना है कि जब तक कंपनी देवता अपना हित नहीं देखेंगे तब तक नहीं करायेंगे। दरअसल इसके पीछे हमारा यही मानना है कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था कंपनी दैत्य या देवता के हाथ में चली गयी है और अब वही तय करने लगा है कि अपने टीवी चैनलों के लिये समाचार, मनोरंजन सामग्री और बहसों के लिये विषय कैसे तय किये जायें? युद्ध से तो कंपनी दैत्य या दानव स्वयं ही मंदी देवी का शिकार हो जायेगा पर बेचने के लिये सनसनी तो चाहिये इसलिये युद्ध जैसी आंशका हमेशा बनाये रखेगा-इससे उसके बनाये हथियारों का धंधा भी चलेगा। डरे जनमानस का मुखिया खुलकर हथियार, विमान और रक्षा के समझौते खरीद सकेगा-उसपर कोई आपत्ति में नहीं करेगा। बहरहाल हम अध्यात्मिक लेखक के रूप में हम यह लिखते हैं कि माया के खुल को समझ ले वह ज्ञानी है और एक व्यंग्य लेखक के रूप में कहते हैं कि ‘कपंनी देवता का रूप देख लो तब किसी चीज पर न हंसी आयेगी न डर लगेगा।
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