यायावरी में बेफिक्र हो गये हम,
नहीं सताता अकेले होने का गम।
कहें दीपकबापू लोग हैरान क्यों
दर्द से हमारी आंखें नहीं होती नम।
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आतंक के आका अमन का मुखौटा पहने हैं,
लुटेरों की दुकान पर सजे गहने हैं।
कहें दीपकबापू राजा पर नहीं भरोसा
भगवान भक्ति से सब दुःख सहने हैं।
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मतलबपरस्तों भी भला क्या गिला,
लुटेरे भी लुटे उन्हें क्या मिला।
कहें दीपकबापू माया के खेले में
कोई खिलाड़ी जगह से नहीं हिला।
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पैसे के नशे से जब ऊब जाते,
लोग शराब में भी डूब जाते।
कहें दीपकबापू आनंद उठाते
वह जो भक्ति रस में डूब जाते।
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विकास के नाम सभी को ठगते,
उनके नाम के पत्थर भी लगते।
कहें दीपकबापू दोष किसे दें
लोग भी वहम की राह भगते।
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इंसानों में अब जज़्बात कहां हैं,
चले पांव अपनां स्वार्थ जहां हैं।
कहें दीपकबापू नारायण दें रोटी
लक्ष्मी का क्या कब कहां है।
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कितने सफेद पन्ने काले किये,
इश्क के गीत गाये बिना नाम लिये।
कहें दीपकबापू इंसान कमजोर है
इसलिये राम नाम लेकर जिये।
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पर्दे के चेहरे जियें या मर जायें,
सौदागर हर अदा पर कमायें।
चलचित्र में कवि दिखें या वीर
कहें दीपकबापू धरा में हम न पायें।
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