अपने शब्दों से वह
हमारे दिल में कांटे चुभोते रहे,
हमने खामोशी अख्तियार कर ली
यह सोचकर कि समय और हालत
इंसान को बेवफा बना देते हैं।
जब होगी खरीदने की ताकत
हम भी खरीद लेंगे उनको
जैसे लोग वफा खरीद लेते हैं
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प्यार के कितने पैगाम उनको भेजे
पर जवाब कभी नहीं आया।
जो झांककर देखा उनकी जिंदगी में
अपने लिये कोई रिश्ता वहां नहीं पाया।
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अपने घर की तंगहाली
और दिल की बदहाली का
बयान किससे करें
सभी को परेशान हाल देखा है हमने।
तोला जो जिंदगी का हिसाब तराजू में
हमसे अधिक लोगों को घेरा था गम ने।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
5 years ago
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