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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/30/11

चाणक्य नीति-प्रतिदिन एक श्लोक नहीं तो आधे का ही अध्ययन करें

            भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में अनेक ग्रंथ हैं। अक्सर लोग कहते हें कि सभी को पढ़ना मुश्किल है या वह इतने बड़े हैं कि उनका अध्ययन करने का हमारे पास समय नहीं है। कुछ लोग तो भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनेक ग्रंथों का होना भी दोषपूर्ण मानते हैं । उनका कहना है कि जिस तरह अन्य धर्मों की तरह हमारे धर्म एक किताब होती है उसी तरह हमारे धर्म की भी होती तो समाज के विचारों में इतना विरोधाभास नहीं होता। दरअसल यह सब अपने अज्ञान तथा आलस्य को छिपाने के लिये पैदा किये गये तर्क हैं। अनेक विद्वान यह बात कह चुके है कि समय मिले तो अन्य ग्रंथों का अध्ययन किया जाये वरना तो चारों वेदों का सार श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी ने व्यक्त कर दिया है। जिसे पढ़कर जीवन और परमात्मा के रहस्य को समझा जा सकता है। उसमें भगवान श्रीकृष्ण जी ने वेदों में स्वर्ग से प्रीति रखने वाले संदर्भों को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए अन्य सामग्री का संक्षिप्त और सार गर्भित संदेश प्रस्तुत किया है। अगर श्रीमद्भावगत गीता का एक श्लोक भी प्रतिदिन कोई पढ़ा जाये तो वह तत्वज्ञान को समझ सकते हैं। श्रीमद्भागवत गीता विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें ज्ञान के साथ विज्ञान भी है। जिन लोगों को अध्यात्म में रुचि है वह उसका अध्ययन किये बिना नहंी रह सकते। कई लोग तो प्रतिदिन एक पाठ तो कई कुछ श्लोक पढ़कर उसे समझने का प्रयास करते हैं।
       चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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          श्लोकेन वा तदर्थेन पादेनैकाक्षरेण वा।
         अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययन कर्मभिः।।
           ‘‘एक श्लोक का अध्ययन और मनन अथवा आधे श्लोक अथवा एक पद अथवा एक अक्षर का ही नित्य स्वाध्याय करना चाहिए।’’
      मुख्य बात मानव हृदय की है। मन में यह विचार होना चाहिए कि हम अपने अंदर बाहर के विकारों को किसी तरह बाहर निकालें। भारतीय अध्यात्म में श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन इसलिये महत्वपूर्ण बताया गया है कि उसमें सांसरिक विषयों की चर्चा कदापि नहीं है। उसके अध्ययन करने पर अन्य विषयों से ध्यान स्वतः हट जाता है और इस तरह पाठक के अंदर नयी स्फूर्ति और नये विचार पैदा होते हैं। समय न हो तो भले ही उसका एक श्लोक रोज पढ़ें उससे भी ज्ञान प्राप्त होता है।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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