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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/17/12

अपनी स्थितियों पर विदेश में आत्ममंथन करते रहना चाहिए-हिन्दी लेख

         आयरलैंड में एक भारतीय महिला दंत चिकित्सक की मौत चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में हुई।  बताया जाता है कि वह महिला दंत चिकित्सक गर्भवती।  गर्भ की स्थिति बिगड़ जाने से गर्भपात आवश्यक था मगर कैथोलिक धर्माधारित राज्य व्यवस्था के कारण चिकित्सकों ने इलाज करने में लापरवाही दिखाई। कैथोलिक धार्मिक व्यवस्था में गर्भपात स्वीकार्य नहीं है।  यही कारण है कि चिकित्सक गर्भ में पल रहे बच्चे की सांस टूटने का इंतजार करते रहे और गर्भवती महिला चिकित्सक  उनसे अपने जीवन की याचना करते हुए स्वयं ही स्वर्ग सिधार गयी। इसमें दो तरह के बातें दिमाग में आती हैं। एक तो यह कि  आयरलैंड में संभवतः यह इस तरह का पहला मामला हुआ होगा जब किसी महिला का गर्भ बिगड़ा होगा और आयरलैंड के चिकित्सक धार्मिक भीरु हैं उनकी समझ में इससे अधिक कुछ समझ में नहीं आया होगा कि वह पहले गर्भ के बच्चे की चिंता करें और उससे धारण करने वाली महिला की बाद में। दूसरा यह कि चूंकि भारतीय महिला चिकित्सक के अपनी धर्म से प्रथक होने की वजह से उन्हें उसके बचाने के प्रयासों में उसके पति से धन्यवाद की औपचारिक भेंट और फीस पाने से  अधिक उनके समक्ष अपने धर्मभीरु होने का प्रमाण पेश करने की उत्सुकता अधिक रही होगी।
            हमारे देश के लोगों को अपने भारतीय धर्म का अभ्यस्त होने की वजह से इस वजह का आभास नहीं है कि विदेशी धार्मिक विचाराधारायें मनुष्य के हर निजी कार्य में हस्तक्षेप कर यह साबित करती हैं कि मनुष्य तो मूर्ख, लालची, कामी, क्रोधी और मोही पैदा होता है।  उसे सुधारने के लिये उसे हर पल का ज्ञान देना चाहिए।  इसके विपरीत हमारे देश के धर्म तथा समाज निरंतर स्थितियों के अनुसार चलने की प्रेरणा देता है। सबसे पहले अपनी तथा अन्य जीवों की देह रक्षा का संदेश देता हैं।  विकास और विज्ञान के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाला ही ज्ञानी होता है।  साथ ही हमारा अध्यात्मिक ज्ञान मानता है कि सभी लोग ऐक जैसे नहीं होते।  दैवीय तथा आसुरी दोनों प्रकृतियों के लोग समाज में रहते हैं।  एकदम सभी लोग ज्ञानी, त्यागी, निष्काम भावी और ईमानदार  नहीं हो सकते तो सभी मूर्ख, लालची और लोभी भी नहीं हो सकते।  इसके विपरीत  विदेशी धार्मिक मानती हैं कि उनके मार्ग पर चलने वाली ही देव हैं और बाकी सब असुर।  कहने का अभिप्राय यह है कि खुले में सांस लेने के आदी भारतीय लोग विदेशी नौकरी और वहां आकर्षण देखकर यह मान लेते हैं कि वहां हमारे जैसे ही लोग हैं।  ऐसे में उन लोगो को जो भारतीय धर्म से इतर विदेशी धार्मिक विचाराधाराओं पर चलने वाले देशों में जाते हैं तो उनको लगता है कि यहां हमसे बेहतर समाज है।  महिला चिकित्सक की मौत तो एक ऐसे राष्ट्र में हुई है जहां फिर भी प्रचार माध्यम कुछ आजाद हैं मगर जहां धर्मभीरु राष्ट्रों में कोई खबर वहां के शासकों के बिना बाहर जा नहीं सकती वहां रहने वाले भारतीयों के साथ जो होता है उनकी खबरें मिलती ही नहीं या इतनी विलंब से मिलती है कि उनपर प्रतिक्रिया देना बासी हो जाता है। 
    हमारे यह वर्तमान काल में विदेशी नौकरी की बहुत चाहत है।  पहले अप्रवासी दूल्हे लेने का फैशन भी चला पर अब पोले सामने आने लगी हैं। आगे चलकर इन नौकरियों का सच भी सामने आयेगा।
            चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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           शैलेले 'शैले न माणिक्यं भौक्तिकं न गजे गजे।
           साधवो न हि सर्वत्र चंदनं न वने वने।।
           हिन्दी में भावार्थ-हर पर्वत पर माणिक्य नहीं मिलते। प्रत्येक हाथी के मस्तक पर मोती नहीं होते। सज्जन पुरुषों का निवास भी सभी जगह नहीं होता।  सभी वनों में चंदन नहीं उगता।

            कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययाऽगमौ।
            क कश्चाऽहं का च में शक्तिरिति चिन्तर्य मूहुर्ममूहुः।।
            हिन्दी में भावार्थ-समय कैसा है, मित्र कौन है, देश कैसा है, कमाई और खर्च की स्थिति क्या है, मैं कौन हूं और मेरी शक्ति कितनी है-यह ऐसे विषय पर हर मनुष्य को सदैव विचार करते रहना चाहिए।
  
            विदेशों में जाकर काम करना बुरा नहीं है पर हमेशा ही अपने स्वास्थ्य, धन, शक्ति और वहां की सामाजिक स्थितियों का भी अध्ययन करते रहना चाहिए।  हमारे देश में जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो उसके परिवार वाले बच्चे के जन्म तक सतत उसके स्वाथ्य पर नजर रखते हैं।  हमेशा सभी के  साथ बुरा नहीं होता पर आशंकाओं के चलते गर्भिणी स्त्री पर नजर रखी जाती है।  जीवन में कभी आनंद कभी निराशा तो कभी उत्साह कभी रोग का आक्रमण होता रहता है।  ऐसा नहीं है कि विदेशों में भारतीय लोग नहीं रह रहे पर जिन लोगों ने भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान को आत्मसात किया है वह संकट में विकल्पों का प्रबंध किये रहते हैं।  जिन लोगों ने केवल पाश्चात्य संस्कृति को ही जीवन का एक सत्य प्रमाण माना है मुश्किलों उनको तब होती है जब प्रतिकूल स्थितियां आती हैं  तब पता लगता है कि सब यहां वैसा नहीं है जैसा हम सोच रहे थे।
      विदेशों में रहने वाले लोगों का क्या कहें, अपने ही देश में अनेक लोग टीवी, मॉल, गाड़ियों और इंटरनेट की रंगीनियों में इतना खो गये हैं कि अध्यात्म तो छोड़िये उन सांसरिक विषयों कि मूल पर भी चिंतन नहीं करते जिनसे उनका वास्ता पड़ता रहता है।  उनकी नाक, कान और आंखें बाहर की तरफ इतनी व्यस्त हैं कि आत्ममंथन करने का न उनको समय मिलता न उन्हें परवाह है।  जिन्हें जीवन सहजता से जीना है उनको निरंतर भारतीय अध्यात्म ज्ञान का अध्ययन करते रहना चाहिए।  विदेशों के भूगोल को सभी जानते हैं पर वहां के इतिहास की भी जानकारी रखना चाहिए। भारत में पाश्चात्य विचारधाराओं के समर्थक अपने देश के इतिहास की क्रूरतम घटनाओं को सुनाकर यह साबित करते हैं कि हमारा समाज असभ्य है पर जिन ज्ञानियों ने पश्चिमी इतिहास पढ़ा है वह जानते हैं कि वहां यहां से भी अधिक कू्रर और असंवेदनशील समाज रहा है।  समय के साथ अगर यहां बदलाव आया है तो वहां भी आया है इसके बावजूद अनेक ऐसी कड़वी सच्चाईयां सामने आती है जो इतिहास की पुनरावृत्ति भर होती है।



लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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