जिंदा कौम होने का अहसास-हिंदी कविता
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जिंदगी में कभी शरीर कभी दिल पर
हादसों से घाव हो ही जाते हैं,
क्यों उनको याद कर जलाते हो खून अपना
दर्दों में जीने की आदत में
हम अपनी मुस्कराहट पर ताला लगाते हैं।
कहें दीपक बापू
बेबसी और लाचारी में
जीने के आदी हो गये हैं सभी,
या आराम की सोच से फुर्सत नहीं मिलती कभी,
शायद इसलिये जिंदा लोगों के दिल का हाल जानकर
उनके मुश्किलों हल करने से अधिक
मरने वालों की याद में
मोमबत्तियां जलाकर
अपनी जिंदा कौम होने का अहसास जताते हैं।
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जिंदगी में कभी शरीर कभी दिल पर
हादसों से घाव हो ही जाते हैं,
क्यों उनको याद कर जलाते हो खून अपना
दर्दों में जीने की आदत में
हम अपनी मुस्कराहट पर ताला लगाते हैं।
कहें दीपक बापू
बेबसी और लाचारी में
जीने के आदी हो गये हैं सभी,
या आराम की सोच से फुर्सत नहीं मिलती कभी,
शायद इसलिये जिंदा लोगों के दिल का हाल जानकर
उनके मुश्किलों हल करने से अधिक
मरने वालों की याद में
मोमबत्तियां जलाकर
अपनी जिंदा कौम होने का अहसास जताते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
2.अनंत शब्दयोग
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4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
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