टीवी चैनलों
पर बार बार यह दोहराया जा रहा है कि क्रिकेट देश एक धर्म बन गया है। इसका एक भगवान
भी इन प्रचार माध्यमों ने बना रखा है जिसे कभी कभी भारत रत्न सम्मान देने की बात भी
उठायी जाती है। हमारे एक मित्र ने हमसे पूछा
कि ‘‘यार,
इतने सारे पाठ तुम
ब्लॉग पर लिखते हो फिर भी तुम्हें कोई जानता नहीं है।’’
हमने कहा कि
‘‘हम वहां जिन
विषयों पर लिखते हैं वह बाज़ार में बिकने वाले नहीं है।’’
उसने कहा कि ‘तुम फिर बाज़ार के विषय पर ही लिखा
करो। कहीं किसी अखबार में छपने के लिये भेजो और वहां छपे तो हमें तुम्हारे पाठ पढ़ने
को मिलेंगे। हम भी तुम्हें पढकर मजे ले ़ पायेंगे।
कंप्यूटर पर हम तो इधर उधर की बातें देखते हैं।
वहां तुम्हें पढ़ना समय नष्ट करना लगता है।’’
हमने कहा-‘‘अच्छा, तुम ही बता दो कि बाज़ार के
किस विषय पर लिखें?’
वह तपाक से
बोले-‘‘क्रिकेट
के विषय पर लिखो। आईपीएल पर लिखो। फिल्म पर लिखो। इन विषयों पर लोग बड़ी रुचि के साथ
पढ़ते हैं।
उसकी
बात सुनकर हम हंस पड़े। आजकल क्रिकेट को कथित भगवान को भारत रत्न देने की बात कम आती
है। वजह यह कि उसने पहले एक दिवसीय क्रिकेट छोड़ी। अब आई पी एल को भी विदा कह दिया। अगर वह न कहता तो भी वह भगवान बना ही रहता। यह अलग
बात है कि उसे वैसे ही बाज़ार की निंदा का सामना करना पड़ता जैसे कभी किसी की मनोकामना
पूरी न होने पर कोई भक्त भगवान से नाराज हो जाता है। वह फार्म में नहीं चल रहा था ऐसे में उसके बुरे
खेल से बहसों में उसे खलनायक बन दिया जाता। दूसरी बात यह कि यह फिक्सिंग वाला मामला
सामने आया तो बहुत दिन तक कुछ नहीं बोला पर जब आई पी एल खत्म हुआ तब देश के प्रचाकर
उसे नाराज हुए। आई पी एल छोड़ने के चार दिन बार फिक्सिंग की बात पर दुःख जताया। प्रचारकों ने अपने भगवान के प्र्रवचन को जस का तस
दिखाकर विज्ञापन का समय पास किया।
आज हम सोच
रहे थे कि अगर हम उस भगवान को भारत रत्न देने की बात ब्लॉग पर जोर छोड़ से उठायें तो
शायद कुछ अधिक पाठक पढ़ने को मिल जायेंगे। संभव
है उस भगवान के पुराने प्रशंसक जो कि प्रचारक भी हैं हमारा नाम कहीं अपने पर्दो पर
चमकायें। देखो आ गयी भगवान को भारत रत्न देने
की मांग।
इधर बीसीसीआई
जो कि कथित रूप से भारत में क्रिकेट खेल पर नियंत्रण करने वाली एकमात्र संस्था है,
उसके अध्यक्ष के इस्तीफे
का मामला प्रचार माध्यमों पर छाया हुआ है।
वह देगा कि नहीं। देगा तो कब देगा। कितने दिन में देगा। प्रचार माध्यमों पर
बहस जारी है और प्रचारकों की बात माने तो उस भी सट्टा लग रहा है। मतलब सट्टा लगना है तो किसी भी विषय पर लगना है
पर क्रिकेट के सट्टे पर विवाद ज्यादा ही चल रहा है। यह बात भी तय है कि जो मैचों पर
सट्टा लगवाते हैं वही इस इस्तीफे के ड्रामे पर भी लगवायेंगे। दूसरे विषय वाले इस तरफ
नहीं आयेंगे। यह प्रचारक एक तरफ क्रिकेट से कमाते हैं तो उस पर फिक्सिंग के आरोप लेकर
बरसते भी हैं। कहीं मैच हुआ उस भी विशेषज्ञ
वही बुलाते हैं जिनको फिक्सिंग के समय बुलाया जाता है। क्रिकेट की कमेंट्री करने वाले
एक पुराने खिलाड़ी ने एक मैच पर कमेंट्री की थी। पता चला कि वह फिक्स था। प्रतिक्रिया में उसेन कहा कि ‘‘मैं तो गंेंदबाज के पिट जाने पर बल्लेबाज की तारीफ कर रहा
था तब मुझे पता नहीं था कि गेंदबाज ने गेंद
ही पिटने के लिये फैंकी थी। इससे तो मेरा विश्वास क्रिकेट से उठ गया है।’’
जब मैचों
के बीच में और बाद में उनके फिक्सिंग होने पर रुदन तथा बहस के प्रसारण बीच भी विज्ञापन
आता है तब सारा मामला ही फिक्स नजर आता है।
आईपीएल खत्म हो गया पर उसका नाम भी चल रहा है।
खेल के बाद फिक्सिंग के समाचार जोरों पर चल रहे हैं। बीसीसीआई के पदाधिकारियों
की बैठक चल रही हैं। प्रचारक लोग कह रहे हैं कि दाल में काला नहीं यहां तो दाल ही काली
है। क्रिकेट इस देश में धर्म है जिसे कलंकित
कर दिया गया है।
इधर हम
अपने आसपास ऐसे लोगों को ढूंढते हैं जिनका धर्म क्रिकेट हो पर मिलते नहीं। हां,
कभी पार्क,
बाज़ार, सब्जी मंडी या रास्ते में
कुछ युवा लड़कों को क्रिकेट पर सट्टे की बातें करते हुए देखते हैं। यह पंद्रह सौ हार
गया। वह पांच सो जीत गया। उनके चेहरे देखते
हैं। यकीन नहीं आता कि उनमें से कोई क्रिकेट स्वयं खेलता होगा। अपने मित्रों से कई
ऐसे लोगों के बारे में पता चलता रहता है जो किकेट पर सट्टा लगाकर पैसा बरबाद करते हैं।
कहीं मां तो कहीं पिता परेशान है। जब प्रचार
माध्यम ऊपर का प्रचार दिखाते हैं तब हम जमीन पर भी उसका प्रभाव देखते हैं। क्रिकेट
खेल अब सट्टे की भेंट चढ़ गया है। इसके प्रति इतनी दीवानगी आज के लड़कों में नहीं है
और जहां तक सट्टा लगाने वालों की बात है वह खेल देखने की बजाय अपने पैसे का खेल देखते
हैं। जब कोई कहता है कि अमुक खिलाड़ी ने क्रिकेट
को बर्बाद किया तो हम कहते हैं कि बर्बाद तो इसे उन लोगों ने किया जो सट्टा लगाते हैं।
लगवाने वालों का काम ही यही है वह तो करेंगे। हम दोष तो सट्टा लगाने वालों को देते
हैं। हालांकि यह लगता है कि उन पर बरसना भ गलत है। सट्टा में घुसने वाला आदमी अपनी विवेक शक्ति
खो देता है। तब हम सोचते है कि ऐसे तत्वों की तरफ देखना चाहिये जिससे उसें विवेक पैदा
नही हुआ। हुआ तो नष्ट हो गया। उनका विश्लेषण उनके परिवार वालों को करना चाहिये।
बहरहाल
क्रिकेट इस समय भारी कमाई देने वाला विषय है।
आम लोगों में इसकी लोकप्रियता कम हुई है पर जनसंख्या की वृद्धि के चलते वह दिखाई
नहीं देती क्योंकि उसका प्रचार ज्यादा है।
फिक्सिंग की बात सामने आती है तो ऐसा लगता है कि पटकथा लिखकर खेल हो रहा है।
अब तो फिल्म वाले भी इससे प्रत्यक्ष जुड़ गये हैं।
एक क्रिकेट खिलाड़ी तथा फिल्म अभिनेता में कोई अंतर नहीं रहा। स्थिति यह है कि यह प्रयास किया जाता है कि क्रिकेट
खबरों में बना रहे। वह मैच हो या फिक्सिंग
पर बहस, किकेट
पर्दे पर चमकना चाहिये ताकि दर्शक देखें, वह कागज पर छपता मिले ताकि लोग पढ़ें और उसके बारे में
स्वर भी रेडियो पर भी गूंजना चाहिये ताकि लोग सुने। पता नहीं क्रिकेट में वाकई फिक्सिंग कितनी होती
है, पर इतना
तय है कि जब कहीं मैच नहीं होता तब उस पर बहस चलाकर जिस तरह विज्ञापन का समय पास होता
है उससे तो लगता है कि सब कुछ फिक्स है।
क्रिकेट पर
कहीं एक बैठक चल रही है उस पर जिस तरह समाचार आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि सब
कुछ फिक्स है। उसे लेकर हम एक कल्पित दृश्य
प्रस्तुत कर रहे हैं। जरा पढ़े।
होटल
में अध्यक्ष जी ने प्रवेश किया। वहां कुर्सियों पर सभी लोग पसरे थे। अध्यक्ष ने अपने निजी सचिव से पूछा-‘‘भई यह क्या बात है?
हम बैठक से तीन घंटे
पहले आये। यह सोचकर कि हम पहले जाकर वहां सोयें। यहां परप्रांत वाले तो हम से भी पहले आ गये।’’
निजी सचिव
ने कहा-‘‘महाराज,
आप ही ने तो संक्षिप्त
सूचना पर सभी को बुला लिया। यह सूचना मिलते
ही यह सभी अपने घरों से रात अंधेरे में भाग निकले। नहीं तो देश भर के प्रचारक इनके पीछे कैमरे लेकर
पड़ जाते। तमाम तरह के सवाल करते।’’
अध्यक्ष
महोदय ने परप्रांत एक प्रतिनिधि के पास जाकर अपनी कुर्सी संभाली। परप्रांत वाले ने
उसकी तरफ देखा भी नहीं!
अध्यक्ष ने कहा-‘‘क्यों रे पापे? ऐसे मुंह क्यों फुलाये बैठा
है?’’
परप्रांत
वाले ने कहा‘‘यार, माफ
करना! मैने प्रचारकों के सामने कह दिया कि तुम्हें इस्तीफा देना चाहिये। यह खबर लगातर
चल रही है।’’
अध्यक्ष
महोदय ने कहा‘‘अरे यार, यह भी कोई नाराज होनें वाली बात है! मुझसे भी प्रचारक कहलवाते रहते हैं कि इस्तीफा
नहीं दूंगा। मै इसे प्रंद्रह दिन से दोहरा रहा हूं।’
परप्रांत
वाले ने कहा-‘‘हां यार, कोई मुझे अध्यक्ष का दावेदार भी बता रहा है।’’
अध्यक्ष
ने कहा-‘‘यार,
यह बताओ आखिर होगा
क्या? मुझे
इस्तीफा देना पड़ेगा। अगर देना पड़ेगा तो लिखेगा
कौन? उसमें
क्या लिखा होगा?’’
परप्रांत
वाले ने कहा-‘‘बॉस लोगों ने क्या तुम्हें पटकथा लिखकर ही भेजी नहीं है क्या?
अध्यक्ष
महोदय ने कहा-‘‘नहीं यार, उनको भी बहुत काम है। संभव है पटकथा लिखने
वालों के अभी समझ में नहीं आ रहा हो कि क्या लिखें। वह भी टीवी देख रहे होंगे। फिर
मोबाइल पर भाव भी तो लेते होंगे। वैसे तुम्हारे अध्यक्ष बनने पर भाव कमजोर है। इसलिये संभावना लगती नहीं है।’’
परप्रांत
वाले ने कहा‘-अब यह तो बॉस लोगों पर है। अभी टीवी पर नाम चलवा लें। मेरे नाम का भाव मजबूत हो
जायेगा।
अध्यक्ष
ने निजी सचिव से कहा-‘‘देखो, अब तुम जाओ हम भी अब कुसी पर सोते हैं। देखो बाहर क्या चल रहा
है। अगर बॉस लोगों का कोई संदेश वाहक आये तो पटकथा हाथ में लेकर यहां ले आना। उसकी
भी जरूरत नहीं है। वैसी ही खबर बाहर दे देना। यहां कौन माथा पच्ची करेगा। सभी सो रहे
हैं। हां, बाद में सभी को अपने डायलाग जरूर
बता देना ताकि बाहर प्रचारकों को सुना सकें।’’
अब इस दृश्य
की पर्दे पर खबर इस तरह आ रही होगी-‘अध्यक्ष ने इस्तीफा देने से इंकार किया’, ‘अध्यक्ष ने पद छोड़ने के लिये
शर्ते रखीं’ और ‘अध्यक्ष
अभी विचार कर रहे है’।ं
सच बात क्या
है हम नहीं जानते। हमारे समझ में भी नहीं आ रहा। आपके समझ में भी नहीं आयेगा। सच तो
यह है कि हमारी कल्पना ही हमारी समझ से बाहर जा रही है। रविवार के दिन विशिष्ट व्यंग्य रचना में रूप में
इतना ही समझ में आया कि कुछ लिखा जाये।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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