हम एक नहीं ऐसे कयी लोगों को जानते हैं जो अपनी पूरी ज़िन्दगी पैसा कमाने में लगा देते है पर सुख के लिए तरस जाते हैं। अगर आप उनसे पूछो कि -"आप पैसा इतना क्यों कमाते हो?' वह जवाब देंगे -"पैसा तो सुख पाने के लिए कमाया जाता है।" अगर आप पूछें -" क्या आप सुखी हैं?" उस समय वह अपनी बात रखने के लिए यह जरूर कह देंगे-" हाँ! और क्या? उस समय आप भी जानते हैं और वह भी कि सरासर झूठ बोला गया है। कयी ऐसे हैं जिनके मकान और दुकान शहरों के अन्दर है जहा सीवर कि लायन चौक पडी है तो पानी कि लायानें फूटी पड़ीं है। गलियों के मकानों में जाओ तो बदबू के मारे बुरा हाल होता है। करोड़ों की संपत्ति शहर में है तो उतनी ही नयी बनीं कालोनी मैं हैं उनके मकान वहां किराये पर चल रहे हैं। शहरो में आबादी ज्यादा होने से आक्सीजन कम होती है और वह वहां उसमे रहने के लिए तैयार है। उन्हें यह ही नही पता कि ताजी हवा होती क्या है? कुछ शासकीय कर्मचारी और अधिकारी ऐसे भी जिन्होंने अपने मकान बना लिए हैं पर वह रहते सरकारी आवासों में हैं। मतलब उनकी किस्मत में पैसा तो है पर सुख नहीं है। चर्चिल ने कहा था कि मूर्ख मकान बनाते हैं और समझदार उसमें रहते हैं। संभवत: उनका आशय गरीब मजदूरों से था । पर अगर वह इस देश को देखते तो यही कहते कि मूर्ख मकान बनवाते हैं और समझदार उसमे रहते हैं। हमारे एक रिश्तेदार हैं। वह सरकारी नौकरी में थे, और मेरे साथ ही मेरी कालोनी से दूर दूसरी कालोनी में अपना मकान बनाया था । मुझे याद है जब मैं अपना मकान बनवा रहा था तो वह रस्ते में मिल जाते थे । गर्मी के दिनों में सायकिल पर चलकर हम दोनों ने अपना मकान बनवाया था। मैं तो अपने मकान में आ गया पर वह सरकारी आवास में बने रहे और मकान किराये पर उठा दिया । मैंने कयी बार उनसे कहा कि आप अपने मकान में आ जाईये तो वह कहते यार सरकारी आवास में मेरा किराया कम लगता है और जो मुझे किराया मिलता है वह चार गुना ज्यादा है। उनके लड़के की शादी हो गयी और उनके रिटायर होने का समय नजदीक आता जा रहा था तो एक दिन मिले फिर मैंने अपनी बात दोहराई तो बोले-"यार मेरी बहु अब तियुशन पढ़ाने लगी है, और मेरा लड़का कह रहा कि इससे उसका नुकसान हो जाएगा। वैसे भी मैं अब रिटायर होने वाला हूँ सोच रहा हूँ कि शहर में ही अपने रिश्तेदारों के पास मकान बनवा लूं। वहां एक प्लाट मिल रहा है तुम्हें मेरे मकान का कोई ग्राहक मिल जाये तो बताना मैं उसे बेच दूंगा। मैंने कहा -"आपने इतनी मेहनत से मकान बनवाया है उसका कुछ तो सुख उठाओ। वह नही माने और वह मकान बेचकर शहर में ही बनीं एक कालोनी में प्लाट ले लिया। फिर भी उन्होने तय किया कि रिटायर होने के बाद में मकान बनवायेंगे । रिटायर होने के बाद लड़के ने कहा सरकारी कालोनी के पास ही मकान बनवायेंगे । धीरे उनका स्वास्थ्य जवाब देने लगा और एक दिन लकवे ने घेर लिया । उस दिन मैं उन्हें देखने गया तो बहुत परेशान थे । लड़के ने उनका पैसा किसी व्यापार में फंसा दिया है। बहु तो खैर ट्यूशन पढा रही है और इस कारण घर चल रहा है। उनके पास अभी भी कुछ पैसा है पर अब वह न मकान लेने की स्थिति में और न बनवाने की। उन्होने मुझसे कहा कि मेरी किस्मत में अपना मकान नहीं था। मैं चुप हो गया । मैंने उनसे कहने वाला था कि आपकी किस्मत में मकान था पर उसका सुख नहीं था, पर मैं चुप रहा और चला आया । ख्वाम्ख्वाह में किसी के जख्मों पर नमक छिड़कने से क्या फायदा.
3 comments:
अच्छा लिखा है भाई..इसी तरह के झमेलों में पड़ा रहता है आदमी जीवन भर और समय निकल जाता है.. न आनन्द ले पाता है न जी पाता है.. और लिखिये और खुल के लिखिये..
लेकिन सर जी जिन्हे आप झमेला कह रहे हैं, दुनियाँ इन झमेलों से ही बनी है.. सम्पूर्ण प्रकृति ही स्वार्थी है.. हाँ सोच अलग अलग है लोगो की.. लेकिन ये बिल्कुल सच है कि आपने बड़े ही सुंदर तरीके से अपनी बात रक्खी है मुझे अच्छा लगा आपका लेख... बहुत साधुवाद आपको..।
लेकिन सर जी जिन्हे आप झमेला कह रहे हैं, दुनियाँ इन झमेलों से ही बनी है.. सम्पूर्ण प्रकृति ही स्वार्थी है.. हाँ सोच अलग अलग है लोगो की.. लेकिन ये बिल्कुल सच है कि आपने बड़े ही सुंदर तरीके से अपनी बात रक्खी है मुझे अच्छा लगा आपका लेख... बहुत साधुवाद आपको..।
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