क्रिकेट में आस्ट्रेलिया ने अपनी ताकत दिखा दीं है, उसके हर खिलाड़ी में जो खेलने का जज्बा है उसकी हमें प्रशसा ही करनी चाहिए। अगर यह टीम कहीं विश्व कप नहीं जीत पाती तो लोगों को अफ़सोस होता, क्योंकि खेल की तकनीकी और नीयत की दृष्टि से उसके खिलाड़ी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों मैं हैं। वह न केवल शक्ति से भरपूर हैं वरन बुध्दिमान हैं और खेल की तकनीकी और रणनीतिक कौशल में उनका कोई सानी नहीं है। कम से कम कोई एशिया की टीम उनकी बराबरी की तो नहीं लगती । यह केवल उनकी विजय पर ओप्चारिकता की दृष्टि से नहीं कह रहा हूँ बल्कि यह उनके खेल को देख कर ही ख रहा हूँ। जब वह खेले हैं तो बस उनका ध्यान अपने खेल पर ही रहता है। क्रिकेट में फिटनेस का पता बैटिंग और बोलिंग से नहीं चलता, बल्कि क्षेत्ररक्षण और रन के लिए विकेटों के बीच दौड़ने से उसे देखा जाता है। इस दृष्टि से उसके खिलाड़ी एक टीम के रुप में दुनियां के सर्वश्रेष्ठ टीम बनाते हैं। हम भारतवासी चूंकि एकदम भावुक होते हैं इसीलिये अपनी टीम में दोष नहीं देख पाते, और यही कारण है कि कभी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कहलाने वाले टीम आज बुरी तरह से पतन के गर्त में समां चुकी है। निकट भविष्य में इसके उत्थान की कोई संभावना भी नहीं दिखती। यहां कोई खिलाड़ी एक दो मैच में अच्छा प्रदर्शन करता है तो लोग लंबे समय तक उसे अपनी टीम में खेलते देखना चाहते हैं और इसी कारण चयनकर्ता भी आलोचना की वजह से मजबूर हो जाते हैं। आजकल विज्ञापन के युग में चूंकि खिलाड़ी जनता में देवता बन जाते हैं और अनेक बड़ी कंपनियां अपने उत्पाद बेचने के लिए उनका इस्तेमाल करती है और वह मैचों का प्रायोजन भी करती हैं तो उनके अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दबाव में भी टीम बनाई जाती है और यह स्वाभाविक है। आख़िर हम लोग भी तो उनके द्वारा सुझाए गये उत्पादों को न केवल खरीदते हैं और उनके द्वारा की गयी एक्टिंग को भी सराहते हैं। उनके विज्ञापनों की लोगों में चर्चा होती है और इसी से होती है रेटिंग जो खिलाड़ियों के लिए वरदायी सिध्द होती है।
विश्व कप से पहले कुछ लोग कहते थे कि पूरी विश्व की क्रिकेट भारत कई पैसे से चल रही है -इसकी समस्त प्रायोजक कंपनियाँ भारत में कारोबार करती हैं । इसका प्रमाण यह है कि उनके उत्पादों के लिए भारत ही नहीं वरन आस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज ,पाकिस्तान और श्रीलंका के खिलाडियों ने भी उनके लिए विज्ञापनों में काम किया। इस समय इंडियन क्रिकेट बोर्ड दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्डों में है, भारतीय खिलाड़ी भी अन्य देशों के क्रिकेट खिलाडियों से कहीं ज्यादा अमीर हैं, और आस्ट्रेलिया की इस जीत ने साबित कर दिया कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता। भारत में बैठे क्रिकेट रणनीतिकार विश्व कप से पहले सोच रहे थे कि क्रिकेट हमारी दम से है तो उनका भरम टूट गया है। उनकी यह खुश्फमी दूर हो गये है कि पैसे से क्रिकेट खेला जाता है -जबकि उनको यह बात समझनी चाहिए थी कि क्रिकेट से पैसा आता है न कि उससे खेला जाता है। भारतीय खिलाड़ियों में भी अपने पैसे का कहीं न कहीं गरूर था जो उन्हें ले डूबा। अब जो कंपनियां भारतीय टीम पर पैसा लगा रही थी वह धीरे-धीरे किनारा कर रहीं हैं और जो हैं वह भी आगी इसी नीति पर चलेंगे। १९७३ से से लेकर २००७ तक जो क्रिकेट का जूनून था वह आम लोगों की सद्भावना के कारण था पूंजीपतियों की वजह से नहीं था। वह तो सद्भाव्नाओं का दोहन कर कर उनसे पैसा कमाने के लिए क्रिकेट से जुडे थे जो अब साथ छोड़ देंगे। (शेष अगले अंक में)
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
1 comment:
आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी तो अच्छे है पर सभ्य नही है।
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