जब कोई हमें अपने बारे में आलोचनात्मक बात कहता है तो हम असहज हो जाते हैं और फिर अपनी सफाई देते-देते अपने लिए मुसीबत खडी कर लेते हैं । हम यह मानकर चलते हैं कि हम में कोई कमी नहीं है और दूसरों में दोष ढूंढते रहते हैं और उनकी चर्चा कर अपना मन बहलाया करते हैं । जब कोई हमारी निंदा करता है तो स्वाभाविक रुप से घबडा जाते हैं । यह असहज भाव इसीलिये पैदा होता है कि हम अपने अंतर्मन के बारे में कभी आत्ममंथन नहीं करते , और सदैव बाहर की तरफ ही देखते हैं । सदैव दूसरों के छिद्रान्वेषण में हम यह भी भूल जाते हैं कि हम भी उसी माटी के पुतले हैं जिसके अन्य लोग हैं और दोष हम में हो सकते हैं ।
संत प्रवर कबीरदास कहे हैं कि
सातो सागर में फिरा ,जम्बुद्वीप दे पीठ
परनिंदा नाहीं करे ,सो कोय बिरला दीठ
इसका आशय यह है कि मैं दूर-दूर तक घूमा पर दूसरों की निंदा न करता हो ऐसा कोइ बिरला ही मिला जो किसी की निंदा न करता हो।
परनिंदा करने से हमारे अन्दर यह भ्रम हो जाता है कि हम सबसे श्रेष्ठ हैं और जब कोई पीठ पीछे हमारी आलोचना करता है तो हम घबडा जाते हैं और कहीं सामने ही की तो हम ऎसी सफाई देने लगते है जिसके बारे में हमें खुद यकीन नहीं होता। हम अपने गुणों का बखान करते हैं और सोचते हैं कि हम अपनी इस आत्मप्रवंचना से अपने आलोचना को धो रहे है पर लोग हम पर हँसते है। कभी कोई हमारे सामने अपनी आलोचना से घबडा कर जब कोई इस तरह झूठी आत्मप्रवंचना करता है तो हम उस पर हँसते हैं कि नहीं । कई बार कुछ चालाक लोग हमारी आलोचना के लिए दुसरे के नाम की मदद लेते हैं -अमुक आदमी आपके बारे में यह कह रहा था। उसकी बात सुनकर हम घबडा जाते हैं और वह हमारे असहज भाव का फायदा उठाकर वह हमसे अपना काम निकाल लेता है और इतना ही नहीं वह दुसरे के प्रति हमारा मन भी मैला कर जाता है ।
अत: हमें अपने जीवन में सदैव ही सहजता के भाव से रहना चाहिए , और यह तभी संभव है है जब हम आत्ममंथन करें। साथ ही हमें किसी की निंदा न करना चाहिए और न अपनी निंदा से डरना चाहिए।
4 comments:
आपने तो ठीक लिखा है, मगर कूड़े के ठेकेदारों को कौन समझाएगा, जो हर रचना को ठहराने पर जुटे हैं.
आप की बात से मै बिल्कुल सहमत हूँ। लेकिन मै सोचता हूँ अगर आप अलोचको की बात को भी सहजता से स्वीकार कर ले या उस पर विचार करें तो आप सह्ज ही सत्य तक पहुच सकते हैं। बशर्ते की अलोचना करने वाला किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त ना हो।
अच्छी बात की आपने.
सत्य वचन!
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