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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/19/07

क्या वह झगड़ा फिक्स था-कहानी

(यह कहानी काल्पनिक है और इसका किसी घटना या व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है)
बोस उस पर चिल्ला रहा था-"मैं तुम्हारे बारे में सुन चुका हौं , तुम काम बिल्कुल नहीं करते, सिर्फ बोस लोगों की चमचागिरी करके मस्ती करते हो, मेरे समय में यह बिल्कुल नहीं चलेगा। मैं सिर्फ काम से रखता हूँ।"
वह बोला-"सर, आपको किसी ने भड़काया होगा, मैं यहां ईमानदारी से काम करता हूँ।"
बोस फिर तेज आवाज में बोला-"मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। मैं चाहता हूँ कि हम सबकी इमेज बनी रहे जो केवल काम से बनती है।"
बैठक कक्ष में सन्नाटा छाया हुआ था, पूरे स्टाफ के लोगों का मुहँ सूख गया था-ऐसे लगा रहा था कि बोस के अलावा बाक़ी गूंगे हौं।
बॉस ने मेरी तरफ देखा-" मैं आपसे वैसे ही सहयोग की उम्मीद करता हूँ जैसे पहले के बोसेस से करते आये हैं।"
मैं मुस्करा दिया। स्टाफ के बाकी लोगों ने यह सोचकर सांस ली कि कोई तो है जो हमने इस बोस के प्रकोप से बचाने के प्रयास कर सकता है। वह इसीलिये नहीं कि मैं उनका नेता था बल्कि इसीलिये कि प्रथम प्रभाव ही अन्तिम होता है और इस लिहाज से में बोस मेरी बात मानता रहेगा ऎसी उम्मीद उन लोगों की थी। आख़िर मैं उनके बीच का व्यक्ति था। बैटक खत्म हो गयी। हम सब बाहर निकले तो एक मेरे पास ही काम करने वाली सह्कर्मचारी बोली-"बोस तो बहुत खतरनाक दिख रहा है अपना प्रभाव उनसे हटने नहीं दीजियेगा ,भले ही थोडी चमचागिरी करना पडे, उन्हें अपना कुछ वक्त देते रहना और तुम्हारा काम हम कर देंगे।"
बोस की लताड़ के बाद वह मेरे पास आया और बोला-"देखा आज बोस ने मुझे कितना लताड़ा , यार कितना भी करो नौकरी में कोई इज्जत नहीं है।"
मैंने उससे कहा-बोस को अभी यहाँ आये केवल सात दिन हुए हैं ,और तुम अकेले ऐसे शख्स हो जो उनसे मिलने उनके चैंबर में जाते हो, चपरासी बता रहा था कि तुम उनसे घुले-मिले हो फिर यह अचानक उन्हें क्या हो गया?"
वह बोला-"बोस लोगों का क्या? उनका दिमाग कब फिर जाये?"वैसे तुम लोगों के जाने की बाद बोस को अपना असली रुप दिखाकर आया हूँ। अब वह मुझसे ऐसा नहीं बोलेगा ।"
मीटिंग की सूचना वही हमारे पास लाया था और नये बोस के साथ यह प्रथम मीटिंग उसको मिली लताड़ से ही शुरू और खत्म हुई थी। थोडी देर बाद चपरासी मेरे पास आया और बोला -"बोस ने आपको बुलाया है । मैं जाने को हुआ तो वह सहकर्मी बोली-"वह भी हमारे बाहर आने का बाद बहुत देर अन्दर था और फिर तुमसे बात करके फिर वहीं गया है ।कहीं ऐसा न हुआ हो उसने तुम्हारे खिलाफ कुछ कहा हो ?"
मैं बोस के चैंबर में जा रहा था और वह बाहर निकल रहा था।उसके चहरे पर मुस्कराहट थी। बोस ने मेरी तरफ फ़ाइल बढाते हुए कहा,"तुम इस फ़ाइल को देख लेना। मैं तुम पर और तुम्हारे काम पर यकीन करता हूँ। तुम्हारा पुराना बोस मुझे सब बता गया है।"
मैं फ़ाइल लेकर वहां से निकलने को हुआ तो बोस बोला-"मैंने उसे बाकी स्टाफ को साधने के लिए फटकारा था, तुम फिक्र न करना। अब यह तो करना ही पड़ता है, वैसे उसने यहां शिफ़्ट होने में मेरी बहुत मदद की है और आज मैंने उसे बता दिया था कि मैं उसे सबके सामने डांटने वाला हूँ ।तुम चिन्ता न करना।"
मैं लोटकर आया और अपनी उसी सहकर्मी की तरफ फ़ाइल बढाते हुए बोस के निर्देशों के नाम से अपने निर्देश दिए। उसने फ़ाइल लेते हुए मुझसे कहा-"बॉस की फटकार का उस पर कोई असर नहीं है वह तो ऐसे ही मस्ती से घूम रहा है।ऐसे लग रहा है कि उसे कोई परवाह ही न हो ।"
मैं हंस पड़ा तो वह बोली-कहीं यह झगडा फिक्स तो नहीं था।"
उसके अनुमान पर मुझे आर्श्चय हो रहा था । मैंने पूछा-"क्या झगडे भी फिक्स होते हैं?"
वह कुछ सोचते हुए बोली -"यह झगडा फिक्स था! मैं दावे से कहती हूँ। "
आत्मविश्वास से किये गये उसके दावे की सच्चाई मैं जानता था पर मुझे लगा कि खामोश रहना बेहतर होगा क्योंकि मुझे आगे भी अपने निर्देश बॉस के नाम से सुनाने थे।
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2 comments:

ePandit said...

बहुत अच्छी कहानी, कहीं आजकल चल रहा झगड़ा भी फिक्स तो नहीं?

अनूप शुक्ल said...

सही है। आजकल फ़िक्सिंग का जमाना है। सब कुछ फ़िक्स रहता है!

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