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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/26/07

भयभीत पर उसका भय ही करता है शासन-चिन्तन

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है'भय'! सभी व्यक्ति किसी न किसी से डरते हैं। मनुष्य पर कोई शासन करता है तो उसके अन्दर मौजूद 'भय का भाव'!इसीलिये शासन करने वाले उसे हथियार की तरह उपयोग में लाते हैं।
सब जीवों में बौद्धिक रुप से सबसे शक्तिशाली जीव है और इसीलिये शासक म्रत्युदंड का , सेठ-साहूकार भूख का , और धर्म प्रचारक ईश्वर और नरक का भय दिखाकर पूरे समुदाय पर अपना नियंत्रण रखते हैं। अपमान,मृत्यु, भूख और बीमारी के भय से ग्रसित आदमी अपने उद्धार के लिए कहीं भी अपनी बुद्धि गिरवी रखने को तैयार हो जाता है। इस संसार में मनुष्य ही ऐसा एक जीव है जिसकी देह की मृत्यु के पश्चात कोई जरूरत नहीं रह जाती-पर जीवित रहते उसके देह की बहुत उपयोगिता होती है और उसका उपयोग तभी संभव है जब उसकी बुद्धि पर नियन्त्रण कर लिया जाये इसीलिये चालाक लोग उसकी बुद्धि को गिरवी रखने के लिए तमाम तरह की योजनाओं और उपायों का आविष्कार कर गये हैं जिनका उपयोग आज तक हो रहा है-रुढियों,रीतियों,और मान्यताओं के नाम पर फुसलाने का काम सदियों से चल रहा है।
मनुष्य में बौद्धिक तत्व की प्रधानता के कारण उसमें ज्ञानार्जन के साथ उसका उपयोग करने की असीम क्षमता है।फिर भी इसके साथ उसमें अकेलेपन का भय विद्यमान रहता है और समूह में रहने की प्रवृति के चलते वह एक समूह बनाकर रहना चाहता है। इस तरह अनेक समूह होते हैं आदमी को लगता है कहीं उस पर आक्रमण न हो जाये इसीलिये वह अपने समूह को मजबूत देखना चाहता है। आजकल हम जति, भाषा, धर्म और क्षेत्रों के नाम पर जो समूह बने देखते हैं, वह इसीका परिणाम है। हम इन्हें आजकल समाज भी कहते हैं।
जब समूह बनता है तो फिर उसके लिए नियम और नेतृत्व होना जरूरी है। नियम के अनुसार समूहों को चलाने का दायित्व और अधिकार शीर्ष नेतृत्व को सौंपा जाता है। फिर शुरू होता है नेतृत्व या कहें समूह प्रमुख का खेल। एक बार शासन और सम्मान मिल गया तो फिर उसे बनाए रखने के लिए दांव-पेंच और जोड़-तोड़ के लिए अपनी सारी शारीरिक और बौद्धिक ताकत के उपयोग का प्रयास केवल इसीलिये होता है ताकि लोगों पर उनका प्रभाव निरन्तर बना रहे। उनकी इस सक्रियता को राजनीति भी कह सकते हैं ।
व्यक्ति में बुद्धि है तो सोच होगी और वह तमाम तरह के प्रश्न उठाएगा और जवाब मांगेगा इसीलिये समूह प्रमुख दुसरे समूह के भय को बनाए रखना चाहते हैं , इतना ही नहीं वह उसके अन्दर भी तमाम तरह के तनाव बनाए रहते हैं ताकि समूह या समाज के लोग एक दुसरे से डरें और कभी भी उसके नेतृत्व की क्षमता और योग्यता पर कोई उंगली न उठा सके-अगर कोई एक उठाएँ तो दूसरा उसका विरोध करे ऐसे व्यूह रचना की जाती है। दुसरे समूह प्रमुख से कभी दोस्ती और कभी दुश्मनी का खेल खेलते रहो ताकि लोग अपने समूह प्रमुख पर अपनी दृष्टि लगाए रहें । यह खेल आज का नहीं है सदियों से चल रहा है । संदर्भ, विषय , नाम और व्यवस्थाओं के स्वरूप बदले पर मूल भाव वही रहा कि आदमी की मन में मौजूद भय की भावना से ही उस पर शासन करो।
आदमी के अन्दर एक और भय कि उसके मरने का बाद क्या होगा। उसके लिए एक और ठेकेदार बने जो उसे नरक से बचाकर स्वर्ग का टिकट दिलाने की सौ फ़ीसदी गारंटी देते हैं । इन लोगों का वर्ग इतना अधिक ताकतवर बन गया कि शासक और सेठ-साहूकार वर्ग के लोग तक इनके पास अपनी बुद्धि गिरवी रखें लगे। इसका सीधा अर्थ यही है कि आदमी चाहे अपने जीवन में जो भी हो पर स्वाभाविक कमियाँ सब में एक समान होती हैं-जिससे सामान्य आदमी डरता है खास पर भी वह अपना प्रभाव बनाए रहता है।
इस वर्ग ने बिना अस्त्र-शस्त्र के हर जति, धर्म ,भाषा, प्रदेश, और राष्ट्र पर राज किया और वह भी केवल अपनी बुद्धि से दूसरों में भ्रम पैदा कर- ऎसी अज्ञात शक्ति का भय जो वास्तव में कभी हमारी शत्रु हो ही नहीं सकती। हम सत्कर्म करें , अच्छे बुरे की पहचान समझें, अक्षम को सक्षम बनाएं और अपनी वाणी पर नियन्त्रण करें तो किसी से डरने की आवश्यकता नहीं है, पर डर है कि लगता है और हम उससे बचने के लिए ऐसे लोगों की शरण में जाते हैं जो डर भगाने का व्यापार करते हैं-और वह इसका ख़ूब लाभ उठाता है ।
सेठ-साहूकार हमेशा लोगों के भूख का भय दिखाकर उन्हें अपने नियंत्रण में रखते हैं। हर आदमी धनिक की खुशामद करता है भले ही कोई तात्कालिक रुप से आर्थिक फायदा हो या न हो, पर यह भय बना रहता है कि कब उनके पास जाकर पैसे मांगने की जरूरत पड़ जाये। धनिकों की जीं हजुरी करने वालों की संख्या उनसे लाभ लेने वालों से कहीं ज्यादा इसीलिये दिखती है क्योंकि अनेक लोग तो केवल भावी लाभ की आशा में उनके साथ लग जाते हैं।
यह भय एक हथियार के रुप में अब ज्यादा ही इस्तेमाल होता है कि लोग अपने मुहँ से ही अपने बाहुबल और ऊंची पहुंच होने के दावे करते मिल जायेंगे ताकि लोग उनसे डरें। अब लोगों में सीधा, सरल और सात्विक दिखने की बजाय स्वयं को शक्तिशाली दिखने की होड़ लगी रहती, और कुछ तो भयावह दिखने का भी प्रयास करते हैं।
कुल मिलाकर भय वह भाव या हथियार है जो एक चालाक और शक्तिशाली आदमी को दुसरे पर शासन कराने की सुविधा प्रदान करता है। जो भयमुक्त होकर जीते हैं वही असली जीवन जीं पाते हैं। मजे की बात यह है कि हम जिनसे डरते हैं वह भी किसी से डरते हैं तब क्यों न मुक्त भाव से जियें।एक बात याद रहे दुसरे को वही भय दिखाते हैं जो स्वयं अन्दर से डरे रहते हैं। अपने इष्ट का नित -प्रतिदिन स्मरण, ध्यान और योग के द्वारा हम अपने भय पर काबू पा सकते हैं।( इस विषय पर शेष चर्चा अगले अंक में )

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