- चन्द्रमा और खिला हुआ कमल जिस तरह सरोवर के चित्त को प्रसन्न कर देता है उसी प्रकार सज्जन पुरुष की चेष्टा भी अन्य प्राणियों के हृदय को प्रसन्न कर देती है।
- सूर्य की तीव्र किरणों से तपते, शरीर को जला देने वाले मरुस्थल के समान दुर्जन व्यक्ति की संगति का त्याग कर देना ही मनुष्य के लिए श्रेयस्कर है।
- पर्वत के समन अचल पुरुष के भी अंतकरण में दुर्जन अकस्मात प्रवेश कर उनके मन को अग्नि के समान जला डालते है- और उन्हें भी पीडा देते हैं।
- जिनके श्वास से अग्नि के कण निकलते हैं, धूम्र से धुम्राय्मान मुख वारे सर्प की संगति अच्छी है पर दुर्जन की संगति अच्छी नहीं है।
- जो केवल आहार मात्र से ही चलता है, क्षणमात्र में ही दुःख से नष्ट हो जाता है। इस छायामात्र देह को जल के बुलबुले के समन ही जानना चाहिए जो कभी भी नष्ट हो सकती है।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
-
*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
1 comment:
शुक्रिया दीपक जी बहुत अच्छी ज्ञानप्रद बातें अच्छा लगा पढ़कर...
सुनीता(शानू)
Post a Comment