जरा सी आहट पर चौंक जाते लोग
कहीं से परेशानी के आने में कांपते लोग
कहीं से खुशी पाने की प्रतीक्षा में लोग
ठहरी जिन्दगी से घबडाये
दिशाहीन चले जा रहे लोग
दूसरों से आगे बढने की चाहत
करते एक-दूसरे के मन को आहट
ढूँढ रहे अपने लिए राहत
विष फैलाए हुए
अपने लिए अमृत ढूंढते लोग
कोई हमारा दर्द हर ले
मन में रहती यही बात
हमसे किसी को सुख न मिले
इसी उधेड़बुन में बिताते दिन-रात
एक दूसरे के मौक़े पर लगाए बैठे घात
दुनिया से विश्वास उठ जाने की
बात करते लोग
अपने लिए जुटा रहे सब तरह के रोग
अपने मन से परे होकर जीते
वह रोता लोग खुद ही विष पीते
माया के गुलाम आदमी के मन का दिन
खुली हवा में सांस को तरसते बीते
उसके इलाज की दवा अपने ही अन्दर
बाहर ढूंढते लोग
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
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