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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/11/07

भ्रम में मत पडो लिखते जाओ

नए और फ्लॉप ब्लोग लेखकों को सलाह दीं जाती है कि अभी वह यूनिकोड में लिखने का सिलसिला जारी रखे तो अच्छा रहेगा। कुछ लोगों ने सादा हिंदी फॉण्ट को यूनिकोड में बदलने के सॉफ्टवेयर की बातें कहीं है पर वह न तो स्वयं इसके प्रयोग की पुष्टि कर रहे हैं न ही किसी ऐसे ब्लोग का पता बता रहे है जिस पर इसका किया जाता है। हमारे ब्लोग पर वह टूल का पता लिखते हैं पर उसके उपयोग का कोई प्रमाण नहीं देते यह स्वीकार्य नहीं हो सकता। वैसे भी हम इन टूलों को स्याही से अधिक महत्व न दें। हमारा मुख्य ध्येय अंतर्जाल पर हिंदी को वह भी देवनागरी में स्थापित करना है और यूनिकोड में अंग्रेजी और कृति देव में हिंदी का बोध करने से कोई लाभ नहीं होगा यह हम लेखकों की समस्या है न कि पढने वालों की। साथ ही यह गलतफहमी भी पालना छोड दें कि आप कोई कम जानते है और दूसरे ज्यादा । मैने अपने अनुभव से यह सीखा है कि जब हम कोई काम करते हैं तो उसकी प्रक्रियाओं से स्वयं ही जानकारी मिलती जाती है।
अत: आप लिखे और जमकर लिखें। रोज पोस्ट डालें और इस तरह का लिखें कि जिसका समाज से सरोकार हो। केवल ब्लोग लेखकों को देखकर नहीं लिखें। इस अंतर्जाल पह सफलता के लिए बस एक ही रास्ता है लिखते जाओ। कमेन्ट आदि कि चिन्ता मत करो वह सब तो चलता रहेगा। अपने मित्रों और अन्य लेखकों को कमेन्ट दो तो वह भी देंगे पर वह एक छोटी प्रक्रिया है, मूल ध्येय है लिखना। मैं चाहता हूँ कि हिंदी में और हमारी संख्या बढ़े। अगर हम लेखक हैं और कर सकते हैं लिखने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। और हिंदी को यूनिकोड में लिखने का अलावा और कोई रास्ता नहीं है और जिस टूल की बात कर रहे हैं उसके बारे में स्थति अभी स्पष्ट नहीं है। उससे दो चार होने में ज्यादा परिश्रम मत करो। मैने इन टूलों की प्रमाणिकता के बारे में जानने का प्रयास किया पर सफल नहीं हो सका।

4 comments:

संजय बेंगाणी said...

आपने सही कहा लिखते जाओ, और हम लिखते जा रहे हैं.

अब बताईये मामला क्या है? कौन रोक रहा है, युनिकोड में लिखने से?

Rachna Singh said...

आप ने एक दम सही कहा हे .प्रचार प्रसार देवनारी लिपी का होना हे .

रवि रतलामी said...

दीपक जी,
मुझे दुख है कि आपको मैं सही तरीका नहीं समझा सका. रचनाकार पर प्रकाशित तमाम रचनाओं का 90 प्रतिशत कृतिदेव श्रेणी के फ़ॉन्टों से रूपांतरित कर प्रकाशित किया जाता है. भाई श्री महेश परिमल के पास 700 आलेख कृतिदेव / चाणक्य में हैं जिसे वे लगातार यूनिकोड में परिवर्तित कर प्रकाशित कर रहे हैं (अपने चिट्ठे संवेदनाओं के पंख में)

उदाहरण अनेकों हैं. बस थोड़ा गंभीर प्रयास करें. कोई तकनीकी दिक्कत हो तो पूछें, बारंबार पूछें. बेशर्म होकर पूछें. शिक्षक यदि डांटे तो भी उसे पी जाएँ....

Udan Tashtari said...

सलाहानुसार लिखते चले जा रहा हूँ...आप पढ़ते चलिये. :)

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