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12/7/07

नारद और ब्लोगवाणी नये प्रयोग से बचें

मैंने आज चिट्ठा जगत को देखा, और अनुभव किया कि उनके द्वारा किये गए परिवर्तन केवल कुछ चिट्ठाकारों तक ही सीमित रह गया है। वह नई पोस्ट को जिस तरह दिखा रहे हैं उससे आम पाठक नहीं ढूंढ पायेगा जबकि मेरा प्रयास यही था कि आम पाठक इस पर आये। वैसे देखा जाये तो चिट्ठाजगत शुरू से नये-नये प्रयोग करता रहा है पर इस बार का प्रयोग उसके लिए फलदायी नहीं रहने वाले। मैंने कहा था कि चौपाल वाले कोई भी बदलाव करें पर मूल स्वरूप में छेड़ छाड़ से बचें। उन्होने श्रेणी बनाई ठीक किया पर नयी पोस्ट को न दिखाकर गलत कर रहे हैं। उनकी चौपाल पर अब वही लोग जायेंगे जिन्हें अपने फोटो और नाम ऊपर देखने होंगे। मेरा नाम तीसरी पंक्ति में इस तरह रखा गया उसे तो मैं भी आसानी से देखने नही पा रहा था। नबर ऊपर से नीचे की तरह होते तो देख पाता पर उन्होने दाएं से बाएँ कर दिए। मतलब वह सिर्फ कुछ चिट्ठाकारों का अधिक ध्यान रख रहे हैं, पर आम पाठक के मनोविज्ञान उन्हें पता नहीं है। वैसे इसमें कोई संशय नहीं है कि उन्होने समय पड़ने पर मुझे बहुत सहयोग दिया है और इसी वजह से कह रहा हूँ कि नयी पोस्ट के दिखने का बदलाव वापस लें वरना मेरे जैसे पाठक के लिए वहाँ जाने का मतलब नहीं है मैं दूसरों के चिट्ठे देखने के लिए इतनी मेहनत नहीं कर कर सकता। मैं एक लेखक हूँ और पाठकों के मनोविज्ञान को समझता हूँ और इस समय भारत में कोई ऐसा चिट्ठाकार नहीं है जो इस बारे में मुझसे अधिक जानता हो।

वैसे मेरी एक ही श्रेणी है 'खिचडी'। उनके सलाहकार जिनको खिचडी चिट्ठाकार कहते हैं उनमें मैं एक हूँ। साथ ही अन्य एग्रीगेटरों से अनुरोध है कि वह किसी ऐसे प्रयोग से बचें। नारद और ब्लोग्वाणी वालों से मेरा अनुरोध हैं कि वह ऐसे सलाहकारों से बचें जो आत्म प्रचार के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। आम पाठक सीधे पढना चाहता है इतनी मेहनत से पढे ऐसे चिट्ठाकार लिख भी नहीं रहे। मुझे आशा है कि ब्लोग्वाणी और नारद अपने मूल स्वरूप नहीं बदलेंगे। जैसा कि मैं कह रहा हूँ इसका समय अभी नहीं आया है। मैं चौपालों पर पाठक ढूँढने आया था और इस तरह के बदलाव मुझे उनसे दूर कर देंगे। दुसरे के फोटो और नामों लिए यहाँ बने रहने का कोई फायदा नहीं है। बहुत बुरा लगेगी यह बात पर जो मन में आया कह दिया। मुझे अपने ब्लोगों पर प्रतिदिन चार सो से अधिक्ज पाठक मिलते हैं पर यहाँ साथी ब्लोगरों को देखने का मोह खींच लाता है, आशा है नारद और ब्लोगवाणी ऐसे बदलाव से बचेंगे।

2 comments:

राजीव तनेजा said...

बिलकुल सही बात की जी आपने....नए चिट्ठों को ढूँढना मुशकिल हो गया है...
आदमी का मन है..मन का क्या है...
कभी ये पढने का मन करता है तो कभी वो पढने का मन भी कर ही लेता है...लेकिन इस तरह मेहनत कर अपने मतलब का माल ढूँढना कठिन हो गय है ...सिर्फ अपनी फोटो देख देख कर ही खुश होते रहें...वो भी बेकार ही है

कुन्नू सिंह said...

mughay hindi ke blog bahut aache lagte hai aagar aap visitor ko badhana chahtay hain to youtube me koi aacha sa video post kar den aur saath he apne blog ka pata bhi pata bade-2 akshron me likhay video ya screenshots

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