समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/30/09

धर्म छोड़ने या पकड़ने वाला विषय नहीं है-आलेख

धर्म और अध्यात्म दो प्रथक विषय हैं। धर्म ऐसे रीति रिवाजों, कर्मकांडों और पूजा पद्धतियों से मिलकर बनाया गया एक बृहद विषय है जो सांसरिक कार्यों के लिये किसी समूह विशेष से जोड़ता है और जिसे मन चाहे ढंग से बदला भी जा सकता है। उसमें अध्यात्मिक शांति ढूंढना एक निरर्थक प्रयास है।
पहले तो अध्यात्म का मतलब समझ लें। अध्यात्म वह निराकार स्वरूप है जो इस पंच तत्वों से बनी इस देह में स्थित है। मन, बुद्धि और अहंकार तीन ऐसी प्रकृतियां हैं जो इसमें स्वाभाविक रूप से पैदा होकर उसका संचालन करती हैं पर वह अध्यात्म का भाग कतई नहीं है। अध्यात्मिक ज्ञान जीवन के सत्य का ज्ञान है जिसे कभी बदला नहीं जा सकता। हां, यह सच है कि बुद्धि और मन की क्रियाओं से ही अध्यात्म को समझा जा सकता है पर उसके लिये यह आवश्यक है कि कोई ज्ञानी हमारा गुरू बन जाये और इस बात का आभास कराये। वह भी मिल सकता है पर उसके लिये हमें पहले संकल्प करना पड़ता है। अध्यात्म शिक्षा की सबसे बड़ी पुस्तक या कहें इकलौती केवल श्रीगीता ही है जिसमें अध्यात्म ज्ञान पूर्णतः शामिल है। सांसरिक विषयों का ज्ञान तो नहीं दिया गया पर उसके मूल तत्व-जिनको विज्ञान भी कहा जाता है-बताये गये हैं। सीधे कहें तो वह दुनियां की एकमात्र पुस्तक है जिसमें अध्यात्म ज्ञान और सांसरिक विज्ञान एक साथ बताया गया है। अध्यात्मिक ज्ञान का आशय है स्वयं को जानना। स्वयं को जान लिया तो संसार को जान लिया।
धर्म प्रसन्न कर सकता है तो निराश भी। उससे मन को शांति भी मिल सकती है और अशांति भी। कभी उसमें अगर आसक्ति हो सकती है तो विरक्ति भी हो सकती है। एक धर्म से विरक्ति हो तो दूसरे में आसक्ति की मनुष्य तलाश करता है मगर कुछ दिन बात वहां से भी उकता जाता है और कहीं उससे तनाव भी झेलना पड़ता है क्योंकि छोड़ने से पुराना समूह नाराज होता है और विरक्ति का भाव दिखाने से नया। ऐसे में आदमी अकेला पड़ने की वजह से तनाव को झेलता है।
आखिर यह सब क्यों लिखा जा रहा है। आज एक अंग्रेजी ब्लाग देखा जिसमें लेखक अपने धर्म से विरक्ति होकर तमाम तरह की निराशा व्यक्त कर रहा था। वह अपने सर्वशक्तिमान की दरबार में हमेशा जाता था। अपनी पवित्र पुस्तक पढ़ता था। उससे उसका मन कभी नहीं भरा। एक समय उसके अंदर खालीपन आता गया। उसने अपने धार्मिक कर्मकांड छोड़ दिये और अच्छा इंसान बनने के लिये उसने दूसरों की सहायता करने का काम शुरु किया। उसने दुनियां के सभी धर्म को एक मानते हुए उन पर तमाम तरह की निराशा अपने पाठ में व्यक्त की। दूसरे की सहायता कर वह अपने अंदर खुशी अनुभव करता है यह अच्छी बात है पर फिर भी कहीं न कहीं खालीपन दिखाई देता है। अध्यात्म ज्ञान के अभाव में यह भटकाव स्वाभाविक है।

लेखक उसकी बात का जवाब इसलिये नहीं दे पाया क्योंकि एक तो अंग्रेजी नहीं आती। दूसरे यह कि 119 टिप्पणियां प्राप्त उस पाठ में वह लेखक दूसरों की बात का जवाब भी दे रहा था। सीधे कहें तो जीवंत संपर्क बनाये हुए था। उन टिप्पणियों में भी लगभग ऐसे ही सवाल उठाये गये जैसे लेखक ने कही थी। तात्पर्य यह था कि लेखक का पाठ केवल उसके विचारों का ही नहीं वरन् दुनियां के अनेक लोगों की मानसिक हलचल का प्रतिबिंब था। ऐसे में एक अलग से विचार लिखना आवश्यक लगा। आजकल अनुवाद टूलों की उपलब्धता है और हो सकता है कि उस ब्लाग लेखक की दृष्टि से हमारा पाठ भी गुजर जाये और न भी गुजरे तो उस जैसे विचार वालें अन्य लोग इसे पढ़ तो सकते हैं।
इस ब्लाग/पत्रिका का लेखक आखिर क्या कहना चाहता था? यही कि भई, धर्म छोड़ने या पकड़ने की चीज नहीं है। भले ही हम दोनों का धर्म अलग है पर फिर भी यही सलाह दे रहा हूं कि, अपना धर्म छोड़ने की बात मत कहो। चाहे सर्वशक्तिमान की दरबार में जाते हो बंद मत करो। अच्छा काम करना शुरु किया है जारी रखो। बस सुबह उठकर थोड़ा प्राणायम करने के बाद ध्यान आदि करो। अपनी पवित्र पुस्तक पढ़ते हो पढ़ो पर अगर श्रीगीता का अंग्रेजी अनुवाद कहीं मिल जाये तो उसे पढ़ो। नहीं समझ में आये तो हमसे चर्चा करो। गुरू जैसे तो हम नहीं है पर चर्चा कर कुछ समझाने का प्रयास करेंगे। हम हिंदी में लिखेंगे तुम गूगल टूल से अंग्रेजी में अनुवाद कर पढ़ना।’
मगर यह सब नहीं लिखा क्योंकि हमें लगा कि कहीं उसने वार्तालाप प्रारंभ कर दिया तो बहुत कठिन होगा अंग्रेजी में जवाब देना। तब सोचा कि चलो इस विषय पर लिखना आवश्यक है। वजह यह थी कि 119 टिप्पणियों में भी दुनियां के सभी धर्मों को एक मानकर यह बात कही गयी थी। उसमें भारतीय धर्म को मानने वाले केवल एक आदमी की टिप्पणी थी जिसमें केवल वाह वाह की गयी थी। अन्य धर्मों के लोग उसकी बात से सहमत होते नजर आ रहे थे।

यह ब्लाग देखकर लगा कि लोग धर्म से इसलिये ऊब जाते हैं क्योंकि उनमें केवल सांसरिक कर्मकांडों की प्रेरणा से स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बताया जाता है पर अध्यात्म शांति का कोई उपाय उनमें नहीं है। वैसे तो भारत में उत्पन्न धर्म भी कम उबाऊ नहीं है पर अध्यात्म चर्चा निरंतर होने के कारण लोगों को उसका पता नहीं है चलता फिर हमारे महापुरुषों-भगवान श्रीराम चंद्र जी, श्री कृष्ण जी, श्रीगुरुनानक देवजी ,संत कबीर,कविवर रहीम तथा अन्य-ने जीवन के रहस्यों को उजागर करने के साथ अध्यात्मिक ज्ञान का संदेश भी दिया और नित उनकी चर्चा के कारण लोग अपने मन को प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं। केवल धर्मकांडों में लिप्त रहने से उत्पन्न ऊब उनको अंदर तनाव अधिक पैदा नहीं कर पाती हालांकि नियमित अभ्यास के कारण उनको अनेक बार तनाव से बचने का उपाय नजर नहीं आता।
......................................................................
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें