जब बहता था दरिया में पानी
तब भला कौन वादा करता था उसे लाने का।
कहीं बांध बनाये
कहीं रास्ता बदला
पानी को बनाकर बेचने की शय
जिन्होंने बिगाड़ दी प्रकृति की लय
अब वही करते हैं सभी जगह वादा
पानी का दरिया बहाने का।
छोटे ईमान के लोग
बड़े बन जाते हैं इस जमाने में
लेकर सहारा ऐसे ही अफसाने का।
लूटते हैं दौलत दोनों हाथों से
उनका दावा है भला करना ज़माने का।
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दौलत, शौहरत और ताकत ने
उन्हें मशहूर बना दिया
पर नीयत से वह बड़े नहीं बन पाए ।
दूर से उनकी चमक एक धोखा है,
घमंड के अँधेरे कुँए में डूबे
वह मेंढक कभी रूह की रौशनी को देख नहीं पाए।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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1 comment:
सुन्दर रचना है। बधाई।
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