फिल्मी हीरो ने बाबा के दरबार में एक टीवी चैनल कर्मी के साथ बदसलूकी की। शायद घसीटा और चमाट (थप्पड़) भी मारी। सर्वशक्तिमान का पर्याय माने जाने बाबा का दरबार, फिल्मी हीरो और मारपीट होना खबर को सनसनी बना देता है। हर चैनल में खबर चल रही है मगर कमबख्त यह फिक्सिंग का ऐसा भूत है जो सभी जगह नज़़र आता है। ऐसा लगता है कि नायक और उसके प्रचार प्रबंधक ने अपनी नयी फिल्म के प्रचार के लिये उसका प्रायोजन किया होगा। फिल्म आने वाली है और उसकी फिल्म का नाम अभी लोगों की जुबान पर चढ़ा नहीं है फिर उस हीरो का नाम भी अभी गुमशुदा जैसा लगता है-क्योंकि बहुत समय से उसकी कोई फिल्म भी नहीं आई। सो फिल्म हिट कराने तथा उसका नाम जनता के बीच स्थापित करने के लिये यह शायद ‘एक्शन सीन’ लिखा गया होगा। जिस तरह हर फिल्म के प्रारंम्भिक दौर में प्रणय तथा अंत में मारपीट के दृश्य होते हैं वैसे ही उसकी नयी फिल्म के प्रचार के लिये अब यह दूसरा दौर शुरु हो गया लगता है।
जब उसकी फिल्म बन रही थी तब उसकी नायिका अभिनेत्री के साथ प्रेंम संबंधों की बहुत चर्चा हुई। यहां तक कि एक प्रणय दृश्य के फिल्मांकन में निर्माता पिता शरम के मारे में उठकर चला गया तो पत्नी भी घर छोड़कर चली गयी-ऐसे समाचार भी आये ताकि फिल्म का प्रारंभिक प्रचार बना रहे। इसमें फिक्सिंग का शक इसलिये भी होता है कि बाद में फिर नयी फिल्म के चुबंन तथा नायिका के साथ उस हीरो के प्रेम प्रसंग की चर्चा शुरु हो गयी। मतलब यह समाचार तो केवल प्रस्तावना की तरह इस्तेमाल किया गया ताकि बाकी बातें जोड़कर खबर जोरदार बनें
वह हीरो अपनी फिल्म हिट कराने के लिये बाबा के दरबार में गया-आजकल के आधुनिक सभ्रांत वर्ग में उनको सर्वशक्तिमान का नया रूप मान लिया गया है जिनकी दरबार में जाने से हर धर्म के व्यक्ति की धार्मिक भावना प्रभावित की जा सकती है, यह अलग बात है कि यह केवल एक भ्रम है। अब ऐसी जगह पर कोई फिल्म अभिनेता शांति से जाकर दर्शन करे तो खबर क्या बनती।
‘अमुक हीरो ने बाबा के दरबार में जाकर दर्शन किये’-यह खबर टीवी चैनलों पर देखकर या समाचार पत्रों में पढ़कर आम दर्शक और पाठक मूंह बिचकाते‘उंह, यह कोई खबर है।’
परिवार समेत गये तो नये लड़के लड़की भी मुंह बिचकाते ‘उंह, परिवार के साथ जाता है, फिल्म की अभिनेत्री को साथ ले जाकर थोड़ा खबर को दिलचस्प नहीं बना सकता था’- इससे खबर रोमांटिक हो जाती।
आजकल के प्रचार प्रबंधक जानते हैं कि बिना प्यार और मारपीट के खबर ठंडी रहती है और लोग नोटिस नहंी करते। फिर आजकल सर्वशक्तिमान के दरबारों में भी माया का खेल है। उनके प्रबंधकों को भी प्रचार चाहिये ताकि दरबारों की चर्चा गाहे बगाहे होती रहे। जहां तक हमारी जानकारी है सभी प्रसिद्ध दरबारों में आज आदमी को बिना पंक्ति में खड़े हुए दर्शन नहीं होते वहां यह खास लोग और प्रचार कर्मी कैसे पहुंच जाते हैं वह भी मूर्तियों के इतने सम्मुख जहां साामान्य भक्त नहीं पहुंच जाता। फिर कैमरा ले जाना निषिद्ध भी रहता है। तब वहां किस तरह खड़ा होता है यह समझ में नहीं आता।
तय बात है कि यह सब प्रतिबंध तो सामान्य लोगों के लिये है। सामान्य भक्त के लिये बस आओ और जाओ जैसी नीति पर सभी दरबारों के प्रबंधक चलते हैं पर जहां खास आदमी की बात आयी और उनमें भी फिल्मी आदमी हो तो फिर सब धरा का धरा रह जाता है। यही चीज हर खबर में फिक्सिंग का शक पैदा करने वाली बनती है।
कहना मुश्किल है कि जिस मीडिया कर्मी से बदसलूकी की गयी वह प्रत्यक्ष रूप से इस फिक्सिंग में शामिल होगा क्योंकि मेहनतकश आदमी को ऐसे काम के लिये प्रत्यक्ष अनुबंधित नहीं किया जा सकता। अल्बत्ता उसका अनजाने में इस तरह उपयोग किया गया होगा जिससे उसे अपनी भूमिका से भी संतोष हो। कम से कम उसके चैनल की टी आर पी बढ़ेगी। फिर सनसनीखेज खबर का आज कोटा पूरा करने पर अपना ही नहीं हर चैनल उसके प्रति कृतज्ञता का भाव दिखायेगा।
वैसे यह टीवी चैनल और समाचार पत्र पत्रिकाओं के पत्रकार ऐसी खबरों के इंतजार में रहते हैं जिसमें उनके द्वारा बनाये गये नये भगवान उनके साथ बदतमीजी कर उन्हें कृतज्ञ करें। शक की पूरी गुंजायश है क्योंकि क्रिकेट, फिल्म तथा अन्य आकर्षक व्यवसायों में लगे लोगों को भगवान बनाने में इन्हीं सगंठित प्रचार माध्यमों का काम है फिर यह कैसे संभव है कि उनके साथ इनकी मुठभेड़ होती है।
वैसे जिस हीरो की शादी हो जाती है वह प्रचारकों के लिये ठंडा है-या कहें कि जिसके पास घोषित रूप से बीबी है वह उनके लिये किसी काम का नहीं है। ऐसे में तलाकशुदा या अविवाहित हीरो से ही सनसनीखेज खबर बनती है। जिस हीरो ने यह चमाट (थप्पड़) नाटक किया है वह विवाहित है और इस समय बीवी के साथ उसके संबंध मुधर भी हैं। ऐसे में उसका प्रचार किस तरह हो? यही एक तरीका हो सकता था कि कोई एक्शन सीन हो जिस पर दिन भर खबर चलती रहे।
कुछ लोग कहते हैं कि टीवी चैनल टीआरपी के लिये जूझ रहे हैं-यही उस हीरो ने भी उनसे कहा-मगर यह उनकी व्यवसायिक मज़बूरी है। उनको रोकने के लिये कहने की आवश्यकता नहीं बल्कि लोगों को समय समय पर यह बताना ही पड़ता है कि कि ‘भई’, आजकल चमाट फिक्सिंग भी होने लगी है।’
कुछ लोग पूछेंगे कि आखिर थप्पड़ की जगह ‘चमाट फिक्सिंग’ शब्द प्रयोग क्यों किया? दरअसल कभी कभी डिस्क पर पाकिस्तानी नाटक आते हैं उसमें सिंधी भाषा से लिये गये इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। फिर आजकल लोग टीवी चैनलों के कार्यक्रमों के अनुसार ही रोते और हंसते हैं। थप्पड़ शब्द से सनसनी फैलती नहीं लगी इसलिये चमाट शब्द प्रयोग किया कि लोगों के लिये यह शब्द अजूबा नहीं है।
-------------------------------------------- कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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