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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/11/10

एक गैर के वास्ते-हिन्दी शायरी (paraye ke vastei-hindi shayari)

नगर में
पर्दे पर महानगर को तैरता देखकर
उसमें उतरने के लिये
हर युवा दिल मचलता है
मालुम न था उसे पत्थर के इस जंगल में
कातिल बीज भी पलता है,
जो साथ लेकर बुरा समय फलता है,
सौंदर्य के सौदागर हर मोल पर
खरीदने कौ तैयार हैं,
दरियालदिल दिखते पर सब मतलब के यार हैं,
जज़्बात की कीमत चुकाते हुए करते प्यार
पैसे भी देकर करें दिल का व्यापार
धोखे की साथ लेकर परछाई।

कहते हैं लोग
जिंदगी के मीठे और कड़वे स्वाद तो
गंवार भी जानते हैं
फिर वह पढ़ी लिखी क्यों न समझ पाई।

कौन समझाये कि पढ़े लिखे होने का मतलब
ज्ञानी होना नहीं होता,
जिंदगी के रस में अंग्रेजी पढ़ा लिखा ही
आम की जगह बबूल के पेड़ बोता,
दिमाग से बडा दिल मानते
रूह से नासमझ हैं पढ़े लिखे लोग
मस्ती का है लाइलाज रोग,
जिसका इलाज नहीं
जहां आये मजा जम गये वहीं
अच्छे बुरे की पहचान अंग्रेजी पढ़ते गंवाई।

मगर कब तक चलता यह सब
भांडा फूटना था अब
उसने अपने गले के लिये रस्सी बनाई
छोड़ गयी अपने लोगों के लिये
वह लड़की जगहंसाई।।
एक गैर के वास्ते
अपनों की महंगी जिंदगी
सस्ते प्यार के जुए में दाव पर लगाई।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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