जो हमने पीठ दिखाई
वह हमारे रूप को शैताना जैसा बताने लगे,
कौन करता है किसकी परवाह
जो दूसरे के लफ्जों पर
रोऐं या मुस्करायें
सभी इंसान
जुबां से उगल रहे बेकार बातें
जैसे जिंदगी का बोझ ढो रहे हैं,
अलबत्ता उनके जज़्बात सो रहे हैं,
आंखें बंद लगती हैं,
भले ही लोग दिखते हैं जगे।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:
sir m deepti sharma poem likhti hu
plz agar aap ek bar dekh le to mujhe aapki patrika join karni h plz help me
mera link h
www.deepti09sharma.blogspot.com
aap dekh le or mujhe meri galtiya bataye m bahut aage badna chahti hu
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