सुनने में आया है कि बीसीसीआई की टीम- जिसे भारतीय टीम भी कहा जाता है- ने आस्ट्रेलिया की टीम को दूसरे क्रिकेट टेस्ट मैच में हराकर श्रृंखला ( टेस्ट क्रिकेट सीरीज) जीत ली है। यह हमने टीवी पर सुना, क्योंकि अब क्रिकेट में दिलचस्पी बिल्कुल नहीं रही है या कहा जाये कि इस खेल से अब चिढ़ ही हो गयी है तो गलत नहीं होगा। चूंकि आज निजी टीवी चैनल वालों के पास क्रिकेट का यही मसाला बहुत है इसलिये उनको नहीं देखना ठीक लगा। अलबत्ता दिल्ली दूरदर्शन पर कॉमनवेल्थ खेलों का प्रसारण देखना अब अच्छा लगने लगा है।
सच तो यह है कि क्रिकेट देखना ही समय खराब करना है। इससे अच्छा तो तरह तरह के खेल कॉमनवेल्थ गेम्स-2010 (राष्ट्रमंडल खेलों) में देखना अच्छा अनुभव रहा है। बैटमिंटन, कुश्ती, तैराकी, हॉकी, तथा अन्य खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन अच्छा चल रहा है। कम से कम एक बात तय रही कि भारत खेलों के मामले में आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के करीब पहुंच रहा है हालांकि अभी भी बहुत दूरी है। हॉकी में इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफायनल में भारत की जीत बहुत अच्छी रही।
आस्ट्रेलिया के विरुद्ध क्रिकेट टेस्ट मैचों में भारत की श्रृंखला जीतने की खुशी हमें इसलिये भी नहीं है क्योंकि नई दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 के अंतर्गत कल आस्ट्रेलिया से भारत का मुकाबला है जो इस हॉकी खेल का विश्व चैम्पियन है। एक मजे की बात यह रही है लंबे समय तक हॉकी और क्रिकेट में पाकिस्तान को भारत का चिरप्रतिद्वंद्वी माना जाता रहा जो कि अब केवल प्रचार भर लगने लगा है। इंग्लैंड की गुलामी करते हुए हमारी सोच भी संकीर्ण हो गयी है जबकि वास्तविकता यह है कि इन दोनों खेलों में विश्व के अन्य देश भी कम चुनौती देने वाले नहीं है। हॉकी में आस्ट्रेलिया के टीम भी बहुत शक्तिशाली है और क्रिकेट में उसे भले ही कभी कभी कड़ी चुनौती मिलती हो पर हॉकी खेल में उसका लंबे समय से एकछत्र राज चल रहा है। क्रिकेट खेल में कभी कभी भाग्य खेल करता है पर हॉकी में ऐसी अपेक्षा नहंी करना चाहिए। क्रिकेट टेस्ट या एकदिवसीय मैचों में भारत की जीत का कोई अधिक मायने नहंी है क्योंकि वह द्विपक्षीय आयोजन होते हैं जबकि हॉकी या अन्य खेल बहुपक्षीय आयोजन होते हैं इसलिये उनमें ही किसी देश की काबलियत का पता चलता है।
वैसे आजकल देखा जा रहा है कि लोग अपने बच्चों को क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में देखने के लिये लालायित रहते हैं जबकि पैसा अन्य खेलों में भी बहुत है-भले ही कुछ खेलों में अनाप शनाप पैसा नहीं मिलता पर अच्छा प्रदर्शन किया जाये तो पैसा आता ही है फिर अब देश की केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें भी पुरस्कार देने लगी हैं जो कि ठीकठाक ही है। टेनिस, स्कवैश, फुटबाल, बैडमिन्टन, गोल्फ, कार रेस तथा अन्य खेलों में खिलाड़ी पैसा कमा रहे हैं। टेनिस तो क्रिकेट से अधिक पैसा देने वाला खेल है इसलिये ही उससे संबद्ध खिलाड़ी विज्ञापन वगैरह करते नज़र नहीं आते। मुश्किल यह है कि उनमें भाग्य नहीं चलता जबकि क्रिकेट में वह एक सहारा बनता है। हम भारतीय भाग्यवादी हैं इसलिये ही शायद क्रिकेट पर अधिक भरोसा करते हैं। वैसे भी यह खेल कम मेहनत वाला है जबकि टेनिस, हॉकी और फुटबाल दम लगाने वाले खेल है।
नई दिल्ली के कॉमनवेल्थ खेल-2010 की चर्चा पहले बुरी बातों को लेकर हुई थी पर अब खेल देखकर लग रहा है कि वाकई आयोजन तो जोरदार हुआ है। पहले तो इन खेलों पर खर्च करने को लेकर आपत्ति की जा रही थी पर अगर लोग इन खेलों को ध्यान से देखें तो उनको लगेगा कि अब कोई एक खेल लेकर बैठ जाने की चीज नहीं है। अन्य खेलों के प्रचार में कॉमन वेल्थ गेम्स (राष्ट्रमंडल खेल) महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं इसमें संदेह नहीं है।
अब बात हॉकी की करें। भारतीय हॉकी टीम को अभी तक के प्रदर्शन से पचास फीसदी अधिक अच्छा खेलना होगा तभी वह कॉमन वेल्थ गेम्स के हॉकी फायनल में जीत पायेंगे। ताकत से खेलने में आस्ट्रेलिया का कोई दुनियां में सानी नहीं है। पाकिस्तान तो इस प्रतियोगिता से बाहर हो गया है। सच तो यह है कि क्रिकेट खेल ने पाकिस्तान में हॉकी का सत्यानाश कर दिया है। एक समय उसके खिलाड़ी विदेशी खिलाड़ियों को कंपा देते थे। भारतीय टीम भी अब बुरे दौर से निकली है पर अभी उसका लंबा रास्ता है। यह मैच सभी को देखना चाहिये। यह फायनल मैच अगर भारत जीतता है तो हमें इतनी खुशी होगी जो कभी नहीं हुई।
इस मैच में सतर मिनट में जितनी ताकत लगेगी वह एक दिन के क्रिकेट मैच अधिक होती है-कभी कभी मैच अतिरिक्त समय में चला जाता है तो 15 मिनट अधिक भी लगते हैं। हॉकी में भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है पेनल्टी कार्नर को गोल में न बदल पाना है जबकि आस्ट्रेलिया इस मामले में दक्ष है, यही कारण है कि हॉकी का जानकार कट्टर से कट्टर देशप्रेमी भी अपनी टीम को संभावित विजेता सौ फीसदी नहीं मान पा रहे। इस खेल में अगर मगर या किन्तु परंतु नहीं चलते। यहां बड़ा खिलाड़ी वही है जो न केवल स्वयं गोल करता है बल्कि साथी खिलाड़ी को भी ऐसे अवसर मुहैया कराता है। बहरहाल हम भारतीय टीम की जीत की कामना तो कर ही रहे हैं साथ यह भी मान रहे हैं कि क्रिकेट मैच से तो अच्छा रहा है नई दिल्ली में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स (राष्ट्रमंडल खेल) देखना। अगर इन खेलों से भारतीय जनमानस की खेलों में रुचियों तथा विचारों में परिवर्तन आता है तो निश्चित रूप से इस खेला के आयोजकों को बधाई दी जाना चाहिए।
--------------
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।राष्ट्रखेल-2010,नई दिल्ली,टेस्ट क्रिकेट मैच,coman walth games,common welth gemes,newdilhi,coman walth games in delhi,india austraila,ingland,hocky match between bharat and austraila,comman wealth games
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
1 comment:
बढ़िया पोस्ट
कृपया कभी समय निकल कर यहाँ भी आये
www.deepti09sharma.blogspot.com
Post a Comment