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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/13/10

गरीब और मज़दूर की इज्ज़त अधिक कीमती -हिन्दी लेख (garib aur mazdoor ki izzat adhik kimti-hindi lekh)

मुंबई से झांसी बहुत दूर है पर वहां की मायानगरी ऐसी है कि यह दूरी कम लगती है और ऐसा लगता है कि मायावी संसार अपने पास ही बसा हो। मुंबई की इसी मायानगरी के सपने का सामना जब झांसी के लक्ष्मण नामक युवक का जब राखी के इंसाफ नामक धारावाहिक से हुआ तो वह वह एक ताने को नहीं सह पाया और ऐसा सच के अपमान से ऐसा अवसाद (डिप्रेशन) में आया कि उसकी मृत्यु हो गयी। उसके परिवार वालों का आरोप है कि वह धारावाहिक की संचालिका राखी सावंत के मुख से अपने लिये निकले नामर्द संबोधन को सह नहीं पाया। उस युवक को पर्दे पर देखने से पता लगता है कि वह कोई महत्वाकांक्षी और उत्साही रहा होगा। जिसमें अपनी जिंदगी से सामना करने की शक्ति तो थी ही उत्साह भी था। मगर पर्दे पर चमककर लोगों के सामने चर्चित होने का मोह उसे ऐसी जगह ले गया जहां से उसे कुंठित होना पड़ा।
मामला यह था कि उसका पत्नी से विवाद चल रहा था। इधर चैनलों के कथित वास्तविक प्रसारणों मे घरेलु और मित्रता में होने वाले झगड़ों-वह वास्तव में होते हैं या नहीं कहना कठिन है-पर धारावाहिक बनाने की परंपरा चल पड़ी है। इसके लिये वह कभी कभी आम इंसानों के बीच से भी पात्र बुला लिये जाते हैं। हालांकि इनमें अक्सर फिल्मी दुनियां से जुड़े जमूड़े ही शामिल होते हैं जो आपस में झगड़ा और प्रेम दोनों ही करते दिखते हैं। झांसी का लक्ष्मण भी अपनी पत्नी और मामा के साथ वहां पहुंच गया।
यह कार्यक्रम कचहरी नामक एक धारावाहिक की तर्ज पर शुरु हुआ है। उसे भारत की एक भूतपूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी संचालित करती थी। वह लोकप्रिय हुआ। वैसे उस कार्यक्रम से भी किसी को कुछ सीखने को नहीं मिल रहा था पर दो मनुष्यों का आपस द्वंद्व अन्य को बहुत भाता है इस कारण उसे लोकप्रियता मिली। इसी तर्ज पर राखी सावंत नामक एक अंशकालिक गायिका, नायिक तथा नृत्यांगना को भी इंसाफ धारावाहिक दिया गया है जिसका नाम भी उससे जोड़ा गया। इसी कार्यक्रम में लक्ष्मण की पत्नी ने अपने पति तथा उसके मामा पर गंभीर कदाचरण के आरोप लगा दिये। उससे सहानुभूति दिखाते हुए राखी सावंत ने लक्ष्मण को कह दिया कि ‘तुम तो नामर्द हो।’
यह ताना वह सह न सका और अवसाद मेें अपनी जान गंवा बैठा। इस पर राखी सावंत का कहना कि ‘वह बीमार था। उसे निमोनिया हुआ और वह टीबी का मरीज था।’
संभव है राखी की बात सही हो पर यह भी सच है कि अवसाद न केवल बीमारियों को बढ़ाता है बल्कि पैदा भी करता है। लक्ष्मण का टीवी पर चेहरा देखने से यह नहीं लगता था कि वह कोई स्थाई बीमारी से ग्रसित था। सच बात तो यह है कि एक गरीब श्रमिक ने प्रचार के माध्यम से समाज में नायक दिखने में मोह में अपनी जान गंवाई है।
उसकी मौत पर चल रही बहस में एक विद्वान से सवाल उठाया कि आखिर लोग वहां जाते ही क्यों है?’
बात तो बढ़िया कही पर एक चैनल पर उठाये गये इस प्रश्न के जवाब में उसकी रिपोर्टर ने लक्ष्मण की नानी के पास खड़े आदमी से यही सवाल किया तो उसका जवाब अत्यंत अच्छा लगा। उसने कहा कि ‘यहां लोग गरीब हैं और लक्ष्मण को दस हजार रुपये और हवाई यात्रा का प्रलोभन दिया गया था। जैसी उसकी स्थिति है उसमें वह इस प्रलोभन से बच नहीं सकता था।’
यह भी पता चला कि वहां से लौटने के बाद वह लोगों को बता भी रहा था कि उसका कार्यक्रम आने वाला है। कार्यक्रम के प्रसारण से पहले उसमें अवसाद नहीं था। यह भी पता चला कि उसने राखी के संवाद का विरोध भी किया था। उसे फटकारा भी गया था कि वह ऐसा विरोध न करे। ऐसे में एक बात लगती है कि उसे आशा थी उसके विरोध के कारण यह संवाद नहीं दिखाया जायेगा। वह इस बात को भूल गया था कि चैनल वालों ने उसे दस हजार रुपये में खरीदा था और वही संवाद उस कार्यक्रम की लोकप्रियता को बढ़ाने में सहायक होने वाला था। वह एक पुरुष के रूप में सोच रहा था एक गरीब के रूप में नहीं जिसकी गरीबी आजकल एक बिकने वाली उत्पाद हो गयी है।
मुश्किल दूसरी भी है कि गरीब सोचता है कि उसकी समाज में कोई इज्जत नहीं है पर जब कहीं झटका लगता है तब पता लगता है कि वही उसकी सबसे बड़ी संपत्ति है। लक्ष्मण को आसपास के लोग चिढ़ाने लगे। वह सहन नहीं कर पाया। पैसा लेकर वह अभिनय करने गया था इज्जत गंवाने नहीं पर कार्यक्रम में वही तो बेचनी थी।
यह कहना कठिन है कि यह विवाद उस तरह का था कि नहंीं जिस तरह दिखाया गया क्योंकि लक्ष्मण की पत्नी का अब कहना है कि उनको बहला फुसला ले जाया गया था। इस पर एक सवाल यह भी है कि जब दोनों अलग अलग रह रहे थे तब दोनों को एक साथ वहां लाने की भूमिका किस की थी। इसका मतलब यह है कि बाज़ार तथा प्रचार माध्यमों का समूह इतना व्यापक है कि उसके लोग हर शहर और गांव में फैले हैं पर पता नहीं लगता। ऐसा भी लगता है कि घरेलू विवाद को भुनाने तथा प्रचार पाने का मोह लक्ष्मण तथा उसकी पत्नी को वहां इसलिये ले गया क्योंकि कोई प्रचार का शिकारी उन पर नज़र रखे था। शायद यह विवाद इतना बड़ा  नहीं था और आसपास के लोगों सहायता से निपटाया जा सकता था पर आकर्षण की दुनियां ने उनको चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया जो अंततः उसके जी का जंजाल बना।
हमें यह पता नहीं कि आगे क्या होगा? सुनने में आया है कि राखी सावंत के के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है। मगर लक्ष्मण की मौत कई लोगों के लिये सबक है। खासतौर से गरीब और मज़दूर वर्ग के लिये। गरीब और मज़दूर वर्ग को यह समझना चाहिए कि उसकी बेबसी भी अब बाज़ार में बिकने वाली वस्तु है। उनके भलेे के नाम पर भारत, सोवियत संघ और चीन में अनेक ऐसे बड़े लोग चांदी काट रहे है जिनको यही पता नहीं कि गरीबी का दर्द और श्रम का क्या महत्व है? इस संसार में कोई गरीब और मज़दूर का भला नहंी करने वाला? अलबत्ता अब बाज़ार और प्रचार माध्यम मिलकर टीवी पर विज्ञापनों के बीच में भद्दे कार्यक्रम परोसते हैं। इससे भी हमें कोई शिकायत नहीं है पर हम यहां बताना चाहते हैं कि अक्सर ऐसे कार्यक्रमों में फिल्म और टीवी धारावाहिक से जुड़े कलाकार आते हैं और वह झगड़ा एक नाटकीयता के तहत करते हैं। एक दूसरे की हालत खराब करते हैं पर कोई उनसे कुछ कहता इसलिये नहीं क्योंकि सभी जानते है कि यह सब नाटक है। इन कार्यक्रमों के प्रस्तोता कभी कभार आम इंसानों में से सस्ती कीमत के लोग ढूंढते हैं। मध्यम और उच्च वर्ग के महिला या पुरुष एक लाख क्या दस लाख में भी अपनी इज्जत की नीलामी बाज़ार में नहीं कर सकते क्योंकि उनको पता है कि इससे तो करोड़ों रुपये की इज्जत जायेगी। फिर उनके विरोध को यह प्रस्तोता अनदेखा नहीं कर सकते। इसलिये वह गरीब और मज़दूर वर्ग के लोग इनके निशाने पर रहेंगे जो सस्ती कीमत में मिलेंगे और किसी बात का विरोध करने पर उनको दुत्कार भी दिया जायेगा। आखिरी बात यह कि गरीब और मज़दूर वर्ग की इज्जत अधिक महंगी है क्योंकि उसके पास रहने के मकान बहुत छोटे हैं। बड़े मकान के बड़े अमीरों की दीवारों के उस पर कोई नहीं देख सकता इसलिये उन पर उंगली कोई नहीं उठा सकता। मध्यम वर्ग तो खैर लफड़ों में पड़ता ही नहीं जबकि गरीब और मज़दूर वर्ग के मकान छोटे हैं और उनके अपने ही दिन में दस बार उनकी तरफ उंगली उठा सकते हैं। मतलब उनकी इज्जत अधिक रक्षणीय है जिसका कीमत में आंकलन करना कठिन है।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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