‘दीपक बापू,
आज की पीढ़ी बहुत अज़ीब हो गयी है,
नैतिकता में बहुत गरीब हो गयी है,
दिवाली पर दिये थे
भतीजे को दारु के लिये
मुंह बंद रखने के भी उसे रुपये दिये,
ले आया बोतल एक सस्ती,
हम भी पीने लगे चढ़ गयी मस्ती,
बाद में पता लगा कि तीन सौ रुपये लेकर
वह दो सौ रुपये वाली बोतल लाया,
इस तरह उसने वहां भी कमाया,
समझ में नहीं आता बड़ा होकर क्या बनेगा।’’
सुनकर पहले गुस्से हुए
फिर टोपी से अपने को हवा देते हुए
कहैं दीपक बापू
‘कमबख्त अपनी दारु की आदत हमको दिखाना,
पर दूसरों से छिपाना,
वैसे चाचा के नक्श-ए-कदम तो भतीजा भी चलेगा,
वैसा ही होगा जिनके बीच पलेगा,
फिर मुंह क्यों लटकाये हो,
कमबख्त इस घटना पर खुशी की बात है
पर तुम साथ मिठाई नहीं लाये हो,
इतनी उम्र में घोटाला करना सीख गया,
आगे वह इसमें राजा बनेगा यह दीख गया,
अरे,
आजकल ईमानदार तो वह होते हैं
जिनके बेईमानी का मौका नहीं मिलता,
वरना तो टूटता है भरोसा सभी जगह,
कहीं ईमानदारी का गुल नहीं खिलता,
वैसे तुम चिंता न करो
तुम चला रहे हो भतीजावाद,
भतीजा भी चलाएगा चाचावाद,
अच्छा हुआ तुम्हें पता चल गया है,
समझ लो तुम्हारी आशाओं का दीपक जल गया है,
बड़े होते ही जनसेवा में उसे लगा लेना,
रहना उसके इर्दगिर्द स्वयं तुम
बाकी सभी को भगा देना,
यकीनन वह घोटालों में राजा बनेगा,
तब तुम्हारा भी तंबू दौलत की शान से तनेगा।
अभी सौ रुपये का विनिवेश किया है तुमने
सर्वशक्तिमान ने चाहा तो
जितनी गिनती हमको नहीं आती
उससे अधिक रुपयों में तुम्हारा धन बनेगा।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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