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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/4/10

वेबसाईट की सुरक्षा-हिन्दी व्यंग्य (websight ki surksha-hindi vyangya)

गूगल ने हमारे दो ब्लाग जब्त कर लिये। उससे लिखा पढ़ी की पर कोई जवाब नहीं आया और न ब्लाग मुक्त हुए। अब तो इतनी तैयारी रहती है कि अगर ब्लाग स्पॉट के सारे ब्लाग भी वह जब्त करे तो उसे एक भी शब्द लिखने वाले नहीं हैं। वर्ड प्रेस के ब्लॉग पर काम कर लेंगे। ब्लाग जब्त यानि हैक करने जैसा ही मामला है।
जब हमारे ब्लाग जब्त हुए तो पूरा पाठ लिख मारा पर किसी ने नोटिस नहीं लिया। अनेक अखबारों ने दूसरे जब्त ब्लाग का जिक्र किया पर हमारे ब्लागों को अनदेखा कर दिया। वैसे नाम के हम भूखे नहीं है इसलिये ऐसे काम भी नहीं करते कि बदनाम होकर नाम भी मिले। इससे ब्लाग हैक होने के खौफ से भी मुक्त होते जा रहे हैं हालांकि यह केवल अपने को दिलासा देने जैसा ही है।
इधर हमारे साथ दूसरी समस्या भी है कि क्रिकेट में फिक्सिंग की बात आने पर उससे मन विरक्त हुआ तो फिर सभी जगह फिक्सिंग नज़र आती है। स्थिति यह है कि भारत के बौद्धिक वर्ग के लोगों ने हमारे ब्लाग पढ़कर हमारा फिक्सिंग का नजरिया भी हैक कर लिया। भले ही लोग कहते हैं कि हिन्दी के ब्लाग कम पढ़े जाते हैं पर यह नहीं जानते कि अभी तक बिना चिंतन के बहस करते विद्वान अब चिंतन के साथ बहस करने लगे है इसमें हमारे आईडिया हैक हो जाने का शक होने लगा है। इससे पहले हर कांड, घटना या कार्यक्रम में फिक्सिंग का आईडिया भला किसी के दिमाग में आया था?
अखबारों ने हमारे आईडिया हैक किये तो कई लोगों ने पूरे पाठ ही हैक कर लिये। कहीं कोई नाम नहीं हुआ। नाम नहीं हुआ तो ब्लॉग की हैकिंग से भी बेफिक्र हैं। यह बेफिक्री तब और बढ़ जाती है जब अपने नाम के सामने फोकटिया ब्लाग लेखक होने का आरोप चस्पा लगा दिखता है। फिर कहीं नाम या नामा नहीं मिलता है न मिलने वाला है इसलिये हैकिंग से बचने के लिये कहीं कुछ खर्च करने का सामर्थ्य भी नहीं होगा। जब खर्च नहीं करेंगे तो किसका फायदा होगा, हमारे ब्लाग हैकिंग होने का खतरा तो तब आयेगा जब उसका हैकिंग या हरण करने से किसी को नामा और नामा दोनों मिलेगा। जब नाम या नामा नहीं मिलेगा तो कौन फोकट के ब्लाग का हरण करेगा। अगर मान लीजिये किसी पाकिस्तानी ने हमारा ब्लॉग अपहृत किया तो उसका नाम कहीं होने से रहा-एक बात बता दें कि हमारे अनेक ब्लाग पाकिस्तान में देखे जा रहे हैं इसलिये पूरी तरह से खतरे से मुक्त होने का दावा केवल फोकटिया होने के कारण ही कर रहे हैं।
इधर सुनने में आया कि पाकिस्तानी हैकरों ने भारत की 270 वेबसाईटों का हरण या हैकिंग कर ली। कुछ लोग देशभक्ति की वजह से उत्तेजित हो जायेंगे पर हमें बिल्कुल तनाव नहीं है। यह हरण या हैकिंग बिना उद्देश्य के केवल डराने के लिये नहीं की गयी। भला पाकिस्तान का कोई काम ऐसा भी होता है? अब वेबसाईटों की सुरक्षा की बात चलेगी तब अनेक लोगों के वारे न्यारे होंगे। जिनको वेबसाईटों की सुरक्षा चाहिए वह कोई कवच ढूंढेंगे। जब कवच बिकेंगे तो कंपनियां आगे आयेंगी। उनके साथ मिलकर ठेके और कमीशन का खेल चलेगा।
हमारा मानना है कि पाकिस्तान सारे काम ही फिक्सिंग के लिये करता है। आप गौर करिये जब भी भारत पर उसका कोई हमला होता है सुरक्षा के लिये प्रयास शुरु हो जाते हैं। उसने धकाधक मंदिरों पर हमले कराये तो अब सभी प्रसिद्ध मंदिरों में मेटल डिक्टेटर, सीसीडी कैमरा तथा अन्य उपकरण दिखने लगे हैं। वह कश्मीर में आतंक फैलाता है मज़बूर होकर भारत को अमेरिका से हथियार खरीदने पड़ते हैं। वही अमेरिका उसको पैसा मदद के लिये देता है। यह मदद नहीं उसका कमीशन होता है जो भारत हथियार खरीदता है उसके ऐवज में मिलता है। मतलब वह हथियार कंपनियों को ग्राहक मुहैया कराता है।
बात अमेरिका की चली तो कहने वाले तो यह भी बताते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति बुश तथा बुश-पिता पुत्र-दोनों ही हथियार कंपनियों से जुड़े थे इसलिये उन्होंने अफगानिस्तान तथा इराक पर हमले किये। वहां अमेरिकी हथियारों का प्रयोग कर दिखाया गया कि उनका उपयोग कितना सनसनीपूर्ण है। अगर आप गौर करें तो सुरक्षा उपकरण भी अमेरिका की ही देन है। शक होता है कि यह मदद पाकिस्तान का कमीशन होता है।
अब वेबसाईट की सुरक्षा के लिये टूल बनेंगे। हम जैसे फोकटिया को इन टूलों से क्या लेना देना? मगर जिनकी कमाई तथा काम का आधार ही इंटरनेट हैं उनको अब सुरक्षा टूलों की आवश्यकता होगी। सरकारी वेबसाईटों की संख्या हमारे यहां बहुत हैं। इसके अलावा अनेक निजी क्षेत्र की वेबसाईटों भी काम करती हैं। अनेक लोग अब चिंता में पड़ जायेंगे। यकीनन सुरक्षा टूलों की बिक्री होगी। उसके नये नये उपकरण और टूल आयेंगे। जितने की वेबसाईट बनेगी उससे अधिक महंगे तो उसके सुरक्षा टूल होंगे। वेबसाईटों की सुरक्षा के लिये अब कंपनियां बनेंगी। उनको ठेके मिलेंगे। वेबसाईटों की सुरक्षा के लिये बकायदा लाईसैंस बनेंगे। बिना लाईसैंस के वेबसाईटों की सुरक्षा करना, टूल बेचना और उपकरण बनाना प्रतिबंधित होगा।
इधर अमेरिका मंदी के दौर से जूझ रहा है। उसके यहां बेरोजगारी है। बैंक दिवालिया हो रहे हैं। वेबसाईटों की सुरक्षा का ठेका भी वह लेगा। उसने अपने यहां विकिलीक्स को हैक करने का अभ्यास कर लिया है। विकिलीक्स अमेरिकी रणनीतिकारों के कपड़े फाड़े जा रहा है मगर यह हमें उसमें भी फिक्सिंग नज़र आती है। वजह! भारत के बारे में ऐसा कोई खुलासा उनमें नहंी है जिसका अनुमान पहले हमने नहीं किया होगा। भले ही अमेरिकी रणनीतिकारों को हमारे देश के प्रसिद्धि बुद्धिमान मानते हैं पर हमें लगता है कि लोमड़ी तो लोमड़ी रहेगी। उसकी चालाकी तो यहां का आम इंसान भी समझ जाता है। विकीलीक्स पर अमेरिका हमले कर रहा है या आने वाले समय में दूसरे देशों की वेबसाईटों पर हमले का अभ्यास कर रहा है, यह भी एक विचार का विषय है। इस प्रकरण में एक बात सामने आयी है वह यह कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक होने का उसका अंतिम वस्त्र भी उतर गया है। पाकिस्तान पर फिक्सिंग का शक इसलिये भी जाता है कि उसने राजकीय वेबसाईटों पर हमला किया है जहां अब सुरक्षा के लिये अलग से प्रयास करने की जरूरत अनुभव की जा सकती है। हमारे देश में राज्य का दायरा बहुत ज्यादा है, जब वह सुरक्षा पर खर्च करेगा तो वह बज़ट भी कम नहीं होगा। देश से लेकर विदेशी कंपनियों को इसमें धंधा मिल सकता है। पाकिस्तान तो केवल तीन चार कांड कर चुप बैठ जाता है उसके बाद जब उसके हमलों से बचाव का उपाय होता है तो उस पर खर्च बहुत आता है। इसलिये शक होता है कि कहीं सुरक्षा कंपनियां ही तो उसे असुरक्षा पैदा करने के लिये तो नहीं उकसातीं। सच के लिये कोई प्रमाण हमारे पास नहीं है। हम जैसे इंसानों के लिये जानकारी का दायरा केवल अखबार और टीवी पर ही निर्भर होने के कारण दायरा सीमित है। अधिक क्या कहें, इंटरनेट पर भी हम केवल हिन्दी लिखने और पढ़ने तक ही सीमित हैं। अलबत्ता कोई पाठ मिल जाये तो लिंक देखने के लिये जाते हैं। आज हमाने देखा कि ‘विकिलीक्स अपने अस्तित्व बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है।’
अमेजन-सर्च इंजिन है या कोई पूरी कंपनी मालुम नहीं-ने भी उसे शर्ते पूरी न होने कारण ठेंगा दिखा दिया है। विकिलीक्स के पास ढाई लाख अमेरिकी दस्तावेज है और हम इंतजार कर रहे हैं भारत के संबंध में किसी ऐसी जानकारी का जिसका पहले से अनुमान न किया गया हो। अगर कोई ऐसी जानकारी नहीं मिलती तो इसका मतलब है कि यह सारा कार्यक्रम भी फिक्स है। संभव है अमेरिका अपने मित्र देशों को यह संदेश भी दे रहा हो कि इधर आम इंसान अब वेबसाईट और ब्लाग लेखक के रूप में स्वतंत्र विचरण कर रहे हैं इसलिये उनको दबाकर रखने का अभ्यास करो। चाहे पूंजीवाद हो या साम्यवाद, स्वतंत्र रूप से आम आदमी का लिखना बोलना सहना नहीं कर पाता। उसे डर होगा कहीं ऐसा न हो कि यह अमेरिका के हथियार कंपनियों के दलालों की पोल न खोलने लगें और उसके इस इकलौते व्यापार दुनियां की बुरी नज़र न पड़ जाये। । एक बात तय रही कि अगला विश्व युद्ध इंटरनेट पर ही होगा। साथ ही यह भी कि अब सुरक्षा का धंधा भी इस पर चलेगा।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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