पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के का निधन हो गया है। हम परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके भक्तों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि तमाम विवादों के बावजूद उन्होंने भारत में अपने ढेर सारे भक्त बनाये।
वैसे देखा जाये तो सत्य साईं बाबा समय समय पर चर्चा में आते रहे पर उनको पूरे भारत मे लोकसंत के रूप में कभी नहीं देखा गया। हम यहां संतों की व्यवसायिक गतिविधियों से अलग हटकर बात कर रहे हैं। इस समय बाबा रामदेव, आसाराम बापू, श्रीश्रीरविशंकर तथा मोरारीबापू जैसे अनेक संत हैं जो लोकसंत माने जाते हैं। लोकसंत की कोई परिभाषा तो नहीं है पर जिनके पास लोग पहुंचते हैं तो वह भी उनके पास पहुंचते हैं उनको ही लोकसंत माना जाता है। उनके पास भी आश्रम होते हैं पर वह उनकी पहचान नहीं होते। उनका लोगों में जाकर प्रवचन करना, उनको दीक्षा देना तथा उनके साथ उठना बैठना ही उनको लोकसंत बना देता है। उसी तरह हमारे देश में कुछ अकादमिक संत भी होते हैं। जो केवल अपने पंथ का निर्माण करते हैं या फिर किसी चलते हुए पंथ के सर्वेसर्वा बन जाते हैं। उनका लक्ष्य अपने पंथ के लोगों से ही संपर्क बनाये रखना होता है। इन सबसे अलग पुट्टापर्थी के सत्य साईं बाबा की छवि चमत्कारी महापुरुष की रही है।
उनके बारे में इतनी व्यापक चर्चा 1975 के बाद अब सुनने को मिली जब वह बीमार होकर अस्तपाल में पहुंचे। इससे पूर्व 1975 में तत्कालीन लोकप्रिय अखबार ‘ब्लिटज्’ में उनके चमत्कारों को लेकर धारावाहिक रूप से कई सप्ताह तक लिखा गया था। उसके संपादक आर. के. करंजिया उस समय आक्रामक पत्रकार माने जाते थे और उनके लेखन की धार काफी तेज थी। उन्होंने अपनी कलम से सत्य साईं बाबा के इस दावे को भी चुनौती दी कि वह शिर्डी के साईं बाबा का अवतार हैं। उनके चमत्कारों को हाथ की सफाई कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई। आजकल की हालत को देखते हुए तो लगता है कि ब्लिट्ज का यह दुष्प्रचार ‘फिक्स प्रचार’ रहा होगा क्योंकि वहीं से ही सत्य साईं को अधिक प्रसिद्धि मिली और उनके भक्तों की संख्या बढ़ती गयी। इसके बाद सत्य साईं बाबा एक बार फिर चर्चा में तब आये जब उनके हाथ से एक भक्त को भभूत देने का दृश्य कैमरे में कैद हो गया। दरअसल उन्होंने वह मौजूद जनसमुदाय को यह दिखाया था वह भभूत हवा में हाथ ं लहराने से अपने आप आई है पर कैमरा बता रहा था कि उन्होंने वह उन्होंने पीछे खड़े अपने शिष्य से हाथ में ली है।
उसके बाद से सत्य साईं बाबा कभी चर्चा में नहीं आये। अब जब वह अस्पताल में भर्ती हुए तो फिर चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया। पता चला कि उनके पास चालीस हज़ार करोड़ की संपत्ति है। इसमें पुटटपर्थी में उनके बनाये गये अस्पताल, विद्यालय तथा अन्य जनउपयोगी संस्थान शामिल हैं। उन्हें विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक प्रमुख भी कहा जा सकता है क्योंकि उनके आश्रम 163 देशों में बताये गये हैं। इतनी बड़ी संपत्ति का स्वामी आज के बाज़ार के संपर्क में न हो यह संभव नहीं है। कहीं न कहीं आज के आर्थिक साम्राज्यों के वह अप्रत्यक्ष स्वामी रहे होंगी। उनका प्रत्यक्ष आर्थिक साम्राज्य भी कम नहीं है। यही कारण है कि उनके अस्पताल जाते ही आज के बाज़ार के प्रचार माध्यमों ने उनका गुणगान प्रारंभ कर दिया। इतना ही नहीं अब पता चला कि भारतीय बाज़ार का सबसे कीमती खेल क्रिकेट से जुड़े दो महानायक भी उनके शिष्य हैं। क्रिकेट के कथित भगवान का जन्म दिन सत्य साईं बाबा के अवसान के दिन पड़ा है सो वह नहीं मना रहा क्योकि उसके अध्यात्मिक गुरु ने अपनी देह त्याग दी है। हम भी मानते हैं कि उसके लिये यह दिन दुःखद है और भगवान उसे सहने की शक्ति प्रदान करे।
85 वर्ष तक शांतिपूर्ण जीवन बिताने वाले सत्य साईं ने अपनी लीलाऐं की और फिर देह त्याग दी। भारत के अध्यात्मिक ज्ञानियों के लिये इतना ही कहानी ठीक है पर जब उनकी संपत्ति को लेकर तमाम बातें होती हैं तो चर्चा इधर से उधर निकल ही जाती है। बताया गया है कि उनके आश्रम 163 देशों में है तो ऐसा लगता है कि वह यकीनन वह महान आत्मा थे। इस दुनियां में कम से साठ देश हैं जो राजनीतिक रूप से गैर हिन्दू धर्म मानने वाले हैं और जहां किसी हिन्दू आश्रम का खुलना संभव नहीं है। संख्या देखते हुए लगता है कि वह उन देशों में भी होंगे। ऐसे में श्रीसत्य साईं बाबा का वहां आश्रम होना चमत्कार से कम नहीं है।
सत्य सांई बाबा को भी शिर्डी के साईं बाबा की तरह चमत्कारी माना जाता है। जहां तक हमारी जानकारी है प्रारंभिक दौर में उनका दावा तो उन्हीं का अवतार होने का था पता नहीं कब वह भगवान के अवतार के रूप में बदल गया। सत्य साईं बाबा को लोकसंत न मानने के पीछे अध्यात्मिक ज्ञानियों के लिये कठिन इसलिये भी रहा क्योंकि उनके साथ चमत्कारी बाबा का विशेषण जुड़ा होना भी था जो कि तत्वज्ञान की दृष्टि से अज्ञान का प्रमाण माना जाता है।
भारतीय अध्यात्म के अनुसार इस धरती पर हर घटना चमत्कारी है या बिल्कुल नहीं है। कहने का मतलब है कि यहां सभी कार्य चमत्कार से भरे हुए हैं या फिर उनमें कोई चमत्कार नहीं है। आप बताईये क्या गेंहूं, चावल, दाल या सब्जियों का पैदा होना चमत्कारी नहीं है। जिस समय बीज बोया जाता है उसके कुछ समय वह अपने बृहद रूप से प्रकट होता है। जीव का पैदा होना भी क्या चमत्कार से कम है? कांटों में चुभन और फूलों में सुगंध होना क्या चमत्कार नहीं है? भारतीय अध्यात्म की सबसे बड़ी खोज ध्यान है। अगर कोई मनुष्य अपना आज्ञा चक्र चमका ले तो उसके लिये हर चीज सामान्य हो जाती है। आधुनिक चिकित्सक बताते हैं कि मधुमेह और हृदय रोग का कारण मनुष्य के अंदर मौजूद मानसिक तनाव है। इसक मतलब अगर मानसिक तनाव न हो तो अनेक तरह के विकार से मुक्त रहा जा सके। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति जीवन से परेशान है और अचानक ही कोई चीज उसके दिमाग में आकर विश्वास पैदा करे तो उसका रवैया बदल देती है। कभी सोया आज्ञा चक्र अचानक चल पड़ता है। यही कारण है कि हमारे यहां मूर्तिपूजा की परंपरा प्रारंभ हुई क्योंकि निरंकार को धारण करना सामान्य लोगों के लिये कठिन है। जेब में किसी भगवान की मूर्ति रख ली। मन में यह विश्वास हो गया कि अब हम अकेले नहीं है और अब सारे काम होंगे। यह आत्मविश्वास अनेक तरह के कार्यों की सिद्धि के लिये एक बहुत बड़ी दवा है। ऐसे में कोई काम होने पर मूर्ति का गुणगान करें पर आध्यात्मिक ज्ञानी जानते हैं कि यह आदमी के अंदर आये आत्मविश्वास का नतीजा है। यही कारण है कि भारतीय अध्यात्मिक से थोड़ा ही ज्ञान प्राप्त करने वाले अनेक संत दूसरों के आत्मविश्वास का स्तोत्र बन जाते हैं। यह अलग बात है कि हमारे देश की समस्यायें हमेशा जटिल रही हैं इसलिये जिसका काम न हो वह इधर से उधर संतों की दरबार में चमत्कार की आस में भटकता है।
बहरहाल इतना तय है कि सत्य साईं बाबा की जीवन यात्रा अनोखी रही। अध्यात्मिक ज्ञानी उनमें कोई दोष नहीं देखते क्योंकि वह जानते हैं कि इस संसार में आर्ती, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा ज्ञानी भक्त हर हालत में रहेंगे। ऐसे में आर्ती और अर्थार्थी भाव भक्तों के लिये ऐसे महापुरुषों का भगवान के रूप में रहना हमारे समाज के लिये जरूरी है। यह अलग बात है कि सांसरिक काम समय के आने पर स्वतः सिद्ध होते हैं पर अगर इसका श्रेय किसी भगवान के पास जाता है तो बुराई क्या है?
हमारी तरफ से सत्यसाईं बाबा को हार्दिक श्रद्धांजलि।
चलते चलते-------------------------------------एक लड़की का अपने प्रेमी से झगड़ा हो गया। वह गुस्से में रेल की पटरी की तरफ आत्महत्या करने के लिये चल दी। वह चली जा रही थी उसकी सहेली ने उसे देख लिया। दरअसल उसने कभी सहेली का पेन लिया पर वापस नहीं किया था। सहेली दूर थी। उसे उम्मीद नहीं थी वह लड़की उसकी बात सुनेगी पर उसने आवाज दी। लड़की के कानों में अपने नाम का आखरी अक्षर पहुंचा। उसे लगा कि उसे कोई बुला रहा है। वह रुकना नहीं चाहती थी क्योंकि उसने कहीं पढ़ा था कि आत्महत्या करने के लिए तत्पर आदमी को उस समय सैकिंड के एक हजार हिस्से से कम समय के लिये कोई नवीन विचार आ आये तो वह इरादा बदल देता है। उधर सहेली ने भी सोचा कि क्यों उसे आवाज देकर अपना गला खराब करे। फिर कभी मांग लूंगी।मगर उस लड़की ने पीछे मुड़कर देखा तो वह सहेली पीछे आ रही थी। सहेली ने उसे अपनी तरफ मुख करते देखा तो हाथ हिलाकर रोका। पास आकर बोली-‘उस दिन तू ने मेरे से पेन लिया वह वापस कर!’लड़की ने कहा‘-वह तो घर पर है, अभी तो मैं आत्महत्या करने जा रही हूं। कल वापस करूंगी।’सहेली ने कहा-‘पहले मेरा पेन वापस कर। पता नहीं आत्महत्या करने के बाद वापस करेगी कि नहीं।’लड़की गुस्सा हो गयी और बोली-‘चल मेरे घर तो तेरा पेन पहले वापस करती हूं। फिर आत्महत्या करूंगी और तुझे भी देखूंगी।’दोनों घर पहुंची। लड़की ने पेन दी तो सहेली ने पूछा-‘तू जा कहां रही थी।’लड़की ने कहा-‘आत्महत्या करने!सहेली हतप्रभ होकर उसकी तरफ देखने लगी। फिर बोली-‘पागल हो गयी है। आत्महत्या करने जा रही है। अपने प्रेमी को क्या भगवान समझ रखा है? अरे यह नहीं तो वह सही, वह नहीं तो और सही! भई, मैं तो कभी आत्महत्या करने से रही। मेरा ख्याल है तू भी रुक जा! यह जिंदगी रोज नहीं मिलती।’लड़की ने अपनी सहेली को गले लगा लिया और कहा-‘अब तू मुझे क्या रोक रही है। अरी, तू ने तो मुझे रोक लिया। यकीन कर रास्ते में मुझे पुकारने के लिये तेरी आवाज मेरे लिये नई जिंदगी बन गयी है।’सहेली ने कहा-‘ पर तू इतना दूर थी कि आवाज देने का मन नहीं था!’लड़की ने कहा-’मेरे कानों में भी मेरे नाम का अंतिम अक्षर आया था। वही मुझे यहां लौटा लाया। सच कहती हूं कि तू ने पुकार कर मुझे बचा लिया।---------
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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