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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/25/11

मनोरंजन खेल और समाज सेवा-हिन्दी हास्य कविता (manoranjan khel aur samaj seva-hasya kavita)

समाज सेवक ने अपने चेले से कहा
‘‘इधर अपनी समाज सेवा का धंधा
फ्लाप हो गया है,
जैसे अपना भाग्य सो गया है,
विद्यालयों में फर्जी रूप से किताबें बंटवाते,
पर्यावरण की शुद्धता के नाम पर
गलियां का कचड़ा छंटवाते,,
और बीमारों की सेवा के लिये
चिकित्सा की व्यवस्था करना,
अब नहीं रहा इन कामों में
पैसा और प्रतिष्ठा का मिलना
जिसके बिना अपना है मरना,
इसलिये अपने समाज सेवा के
धंधे के लिये नया काम सुझाओ,
अपना खोया हुआ सम्मान बुलाओ।’’

सुनकर चेला बोला
‘‘आप अब आदमी के उद्धार की
छद्म सेवा का धंधा छोड़ दो,
उसमें अपने हाथ कभी काम करते
नज़र नहीं आते,
बस, चंदे के लिये लोगों के आगे फैलाते,
अपने पुराने ख्यालों का पुल तोड़ दो,
अब खेलों के विकास का कार्यक्रम
बना कर जुट जाओ,
उसमें मैदान पर लड़के लड़कियां
बॉल इधर से उधर दौड़ाते नज़र आयेंगे,
तब हम कुछ न करते हुए भी
खेलने  का मजा ले पायेंगे,
जरूरत न हो तब भी खेल में बीच बीच में
नृत्य संगीत और गीत का इंतजाम भी करना,
वरना हो जायेगा फ्लाप शो
नहीं मिलेगा चंदा अधिक
पड़ जायेगा  जेब से पैसे भरना,
एक बाद याद रखिये
खेल के खिलाड़ियों  से हमारा कोई मतलब नहीं है,
मनोरंजन और खेल में
हमारे देश का आदमी
फर्क रखना अब समझता नहीं है,
ऐसा लगता है इस ज़माने में
जिन लोगों के पास पैसा आया मुफ्त
वही उठा रहे बेवकूफी में ऐसा लुत्फ,
आप अब खेलों की दृनियां में आ जाओ,
समाज सेवा करते हुए
आपके चेले भी मजे में रहेंगे
आप भी आनंद उठाओ।’’
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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