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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/26/12

दौलत के हाथ-हिन्दी कविता (daulat ke hath-hindi kavita,hand of maney-hindi poem)

उनके हाथ लंबे हैं,
क्योंकि वह दौलत के खंभे हैं,
लाचार हैं
इशारों से काम चलाते हैं,
झुक कर कुछ नहीं देख सकते
राह चलते हुए कंकड़ों से
टकराने पर भी लड़खड़ाते हैं।
कहें दीपक बापू
ऊंचाईयों पर सांस लेना कठिन है,
पहाड़ पर खौफ में ज़िंदगी
चाहे रात या दिन है,
दौलत और शौहरत की चाहत
जब पूरी होती है,
उसे बचाने में
काया की हिम्मत अधूरी होती है,
जिनके पेट बड़े हो गए बैठ बैठे
रोटी की भूख उनके लिए छोटी है,
दिल हो गए छोटे
मेहनतकशों के लिए उनकी नीयत खोटी है,
कर लेते हैं खुद को वह महलों में बंद
बाहर फैले बेबसी के माहौल देखने से
बस वह यूं ही बच पाते हैं।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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