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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/23/14

ध्यान से ही बंदर रूपी मन पर नियंत्रण संभव-हिन्दी चिंत्तन लेख(dhyan se hi bandar roopi man par niyantran sambhav-hindi chinntan lekh)



      ध्यान की पहली सीढ़ी मौन है।  मौन की शक्ति इंद्रियों के नियंत्रण में है। इंद्रियों का स्वामी है मन  सहजता से काबू में नहीं आता। अपने वचन और कर्म पर बहुत कम लोग स्वयं नियंत्रण रखते हैं। उनकी देह का रथ मन सारथी के रूप में जहां चाहे खींच लेता है।  देख जाये तो योग  तो सभी करते हैं पर जो मन के वश में वह असहज रहते हैं। जिनका मन पर नियंत्रण है वह सहज योग की क्रिया के स्वतः ही रत रहते हैं।  कहने का अभिप्राय यह है कि इंसान सहज अथवा असहज योग की क्रिया से जुड़ा ही रहता है। योग साधना का अभ्यास करने वालों को यह पता है कि मन पर नियंत्रण किया जाये तो वह पर्वत के समान साथ होता है नहीं तो बंदर की तरह इधर उधर नाचता और नचाता है।

संत कबीरदास जी कहते हैं कि
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कबीर मन परबत भया, अब मैं पाया जाना।
टांकी प्रेम की, निकसी कंचन की खान।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-मन तो पर्वत के समान है। उसमें प्रेम की टांकी लगाये जाये तो स्वर्णिम भंडार निकल आता है।
कबीर मन मरकट भया, नेक न कहूं ठहराय।
राम नाम बांधै, जित भावै तित जाय।।
      सामान्य हिन्दी में भावार्थ-मन बंदर के समान इधर उधर भटकता है उसे अगर राम के नाम से बांध दिया जाये तो नियंत्रण में आ जाता है।

      मन पर निंयत्रण ध्यान से ही संभव है। श्रीमद्भागवत गीता में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एकांत तथा शुद्ध स्थान पर आसन लगाकर प्राणायाम के बाद भृकुटि पर ध्यान रखने की क्रिया करने के साथ ही ओम (ॐ) शब्द जापने वाला कालांतर में ज्ञानी बन जाता है।  ज्ञानी का आशय सांसरिक विषयों से पलायन करने वाला नहीं होता वरन् उसमें लिप्तता की सीमा रखने वाला ही यह उपाधि धारण करने योग्य है। संसार के विषय मनुष्य को इतना व्यस्त रखते हैं कि उसे अध्यात्म का ज्ञान ही नहीं रहता।  यह अलग बात है कि इन विषयों में प्रारंभिक रूप से प्राप्त अमृतमय रस बाद में विष का रूप धारण कर लेता है। इस विषय के निवारण ध्यान से ही किया जा सकता है।
      आमतौर से ध्यान को लेकर अनेक विधियां होने की बात कही जाती है पर श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भृकुटि पर ध्यान क्रेद्रित करने पर सहज अनुभूति होती है। इस तरह ध्यान से मन पर नियंत्रण के बाद यही संसार जो विषयों में आसक्ति से मिले रस के अमृतमय लगने के बाद जब उसके विष के रूप में परिवर्तित होता है तब मुक्ति दिलाता है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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