खाने पीने पहनने और रहन सहन में
अंग्रेजों की करते हम नकल,
पढ़ पढ़ अंग्रेजी अपनी हिन्दी हो गयी
हिंग्लिश
चरने लगी है मनोरंजन की घास हमारी अकल।
कहें दीपक बापू उपभोग में नया फैशन अपनाते
हैं,
नहीं होती अब चौपाल पर अध्यात्मिक चर्चा
बीमार लोग राजरोग पर अपना ज्ञान दर्शाते
हैं।
रोटी की जगह जीभ पीजा और बर्गर का स्वाद
मांगती है,
आंखें सच से ज्यादा पांखंड पर अपनी नज़र
टांगती हैं।
निज स्वामित्व के सपने अब नहीं देखता कोई
गौरव गाथा लोग सुनते बड़े चाव से
उनकी जो गुलामी के शिखर पर पहुंचने में
रहे सफल।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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1 comment:
बहुत सुन्दर भाव विचारणीय रचना
भ्रमर ५
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