अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जिस तरह छह जून 2014 को वहां मौजूद कुछ लोगों का आपसी संघर्ष टीवी चैनलों पर दिखा वह अत्यंत
दुःखद है। वैसे तो स्वर्ण मंदिर को मूलतः
सिखों का तीर्थस्थान कहा जा सैद्धांतिकर रूप से कहा जा सकता है पर चूंकि अनेक
हिन्दू तथा अन्य धर्म के लोग भी उसका सम्मान करते हैं इसलिये इसे संपूर्ण भारतीय
समाज के लिये श्रद्धा का केंद्र माना जाता है। वहां अन्य धर्मों के लोग भी उसी
श्रद्धा से जाते हैं जैसे कि सिख जाते हैं।
इसलिये समूचे भारत के धार्मिक तथा अध्यात्मिक साधकों ने लिये यह घटना अत्यंत
दर्द पैदा करने वाली है।
देश में अनेक ऐसे प्रयास होते रहे हैं जिसमें सिख तथा
अन्य भारतीय धर्मों को अलग बताकर भारतीय समाज को बांटने का प्रयास किया जाता है पर
इतिहास गवाह है कि सिख धर्म का प्रादुर्भाव हिन्दू धर्म के रक्षा के लिये हुआ
था। सिख गुरुओं ने सदैव संपूर्ण भारतीय
समाज की रक्षा करने की बात कही है। इसलिये
ही गुरुग्रंथ साहिब को संपूर्ण भारतीय समाज वैसे ही सम्मानीय मानता है जैसे
श्रीमद्भागवत गीता को माना जाता है। कहने
का अभिप्राय यह है कि स्वर्ण मंदिर में
हुई इस तरह की घटना से संपूर्ण भारतीय समाज आहत हुआ है। जिन लोगों ने वहां इस तरह की निंदनीय घटना में
सक्रिय भागीदारी की उन्हें कतई सिख धर्म का रक्षक नहीं माना जा सकता हैं। अमृतसर
के स्वर्ण मंदिर में पूरे विश्व से श्रद्धालू आते हैं। यकीनन इसका लाभ वहां के
व्यापार तथा सेवाओं में रत लोगों को मिलता है।
अगर इस तरह की घटना से अगर कहीं वहां जाने पर असुरक्षा का भाव पैदा होता
रहा तो बाहर के श्रद्धालूओं का आना काम हो सकता है। इसका प्रभाव पूरे शहर पर पड़ सकता है।
हम आशा करते हैं कि आगे ऐसी घटनायें नहीं होंगी। जिन
महान गुरुनानक देव को सिख धर्म का प्रवर्तक माना जाता है वह इस तरह की घटनाओं को
समूचे समाज के लिये खतरनाक मानते थे।
उन्होंने प्रेम, भक्ति तथा सहिष्णुता का जो संदेश दिया उसे
पूरा विश्व अनुकरणीय मानता है। इसलिये
चाहे किसी भी बात पर स्वर्णमंदिर में विवाद हुआ वहां तलवारें और डंडे चलाने का
तर्क किसी भी हालत में तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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