पेड़ के पत्तों ने रुख बदलकर
हिलना शुरु किया
पर बहती हवा वही है।
पिछले साल भी बरसे थे बादल
अब दूसरे आये हैं
मगर पानी का रूप वही है।
रोज धूप पड़ती है
कभी जलाती कभी सहलाती
मगर सूरज वही है।
कभी रात में अंधेरा बरसता
कभी हो जाता उजाला
मगर चंद्रमा वही है।
कहें दीपक बापू अपना आसरा
स्वयं की ही शख्सियत पर रखना
चेहरे बदलते रहेंगे हमेशा यहां
सभी का भला करने का वादा वही है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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