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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/3/14

दावे से कहना मुश्किल है-हिन्दी कविता(dawe se kahana mushkil hai-hindi poem)




पैसे के लिये अपराध होता है
या पैसा अपराध कराता है
दावे से कहना मुश्किल है।

कोई पैसे के पीछे भाग रहा है
या पर्दा बनाकर पीछे से नचा रहा है
दावे से कहना मुश्किल है।

कोई थामे  बंदूक कोई डंडा घुमा रहा है
स्वप्रेरित है या  पैसे का इशारा पा रहा है
दावे से कहना मुश्किल है।

कहें दीपक बापू  आदमी की नीयत
अब बाज़ार में सौदे की चीज बन गयी
सभी जुबान से शब्द खर्च खूब करते हैं
कौन देगा धोखा कौन निभायेगा वादा
दावे से कहना मुश्किल है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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