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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/11/14

नारों से चिंगारी नहीं निकलती-हिन्दी कविता(naron se chingari nahin nikaltee-hindi poem)




नारे कोई दियासलाई नहीं होते
जिनसे निकली चिंगारी
समाज में कोई बदलाव कर दे।

जिंदा रहने के लिये सभी संघर्षरत
संभव नहीं है
मतलबपरस्त इंसानों में
कोई ज़माने के लिये
वफा का भाव भर दे।

कहें दीपक बापू प्रेम का संदेश
सुनाते हुए प्रचार बहुत मिल जाता है,
दर्दनाक हादसों पर लगती भीड़
हमदर्दी दिखाते हर कोई हिल जाता है,
मिलता कभी  कोई ही विरले फरिश्ता
जो बिना दाम लिये
किसी का घाव भर दे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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