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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/7/14

उम्र के आईने में-हिन्दी कविता(umar ke aaine mein-hindi poem)


अपनी जिंदगी
एक धारा में बहती
सभी को नज़र आती है।

यह अलग बात है
आंखें  तो टुकड़ों में ही
गुजरते पल संजो पाती है।

बुद्धि की गति
इतनी  हो गयी असंतुलित
गम पर निकलते आंसु
हास्य पर हंसी
कभी नहीं आती है।

कहें दीपक बापू बदहवास लोग
उम्र के आईने में देखते रहते
उनकी अपनी ही शक्ल
शनैः शनैः धुंधली हो जाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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