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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/1/15

रॉबिनहुडीय अर्थव्यवस्था में मध्यम वर्ग का अस्तित्व-हिन्दी चिंत्तन लेख(robinhoodiy arthvyavastha mein madhyam varg ka astitva-hindi thoughta article)



            भारत के समाज शास्त्रियों की समझ पर तरस आता है। हैरानी की बात यह है कि अधिकतर समाज शास्त्री स्वयं ही उस मध्यम वर्ग के हैं जिसकी किसी भी अभियान में शारीरिक श्रम से अधिक बौद्धिक भूमिका होती है। वह  उच्च तथा निम्न वर्ग के मध्य स्थित होकर सामंजस्य की भूमिका निभाता है जिसका ज्ञान सामाजिक ढांचे का अध्ययन करने पर ही हो सकता है। इसका मतलब यह है कि यह समाज शास्त्री जब चिंत्तन करते हैं तो स्वयं को अपने घर परिवार की स्थिति से प्रथक हो जाते हैं।  किसी भी विषय पर चिंत्तन कर अपने भाव सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त कर संचार माध्यमों से प्रचार, अमीरों से पैसा पाना या विचारधारा के पोषकों प्रतिबद्धता दिखाना  ही उनका उद्देश्य रह जाता  है।  यही कारण है कि आज जब भारतीय समाज के बिखराव की बात करते हैं तो यह नहीं समझ पाते कि मध्यम वर्ग का संकट ही इसका कारण है।
            मध्यम वर्ग में शिक्षक, वकील, पत्रकार, चिकित्सक तथा शासकीय कर्मचारी सहित बौद्धिक श्रम करने वाले लोग होते हैं जो न केवल राजकाज वरन् समाज के संचालन की भूमिका निभाते हैं। इतना ही मध्यम वर्ग अपने जीवन में आर्थिक संघर्ष करते हुए अर्थक्षेत्र के समसे बड़ा उपभोक्ता तो होता ही है राजस्व प्रदान करने में इसकी भूमिका भी अधिक होती है। आधुनिक प्रबंधकीय व्यवस्थाऐं रॉबिनहुडीयसिद्धांतों पर आधारित हैं।  जिस तरह रॉबिन हुड के बारे में कहा जाता है कि वह अमीरों से छीनकर गरीबों को देता था-हमारे यहां कुछ डकैतों की भूमिका इसी तरह प्रचारित की गयी हैं-उसी तरह हर तरह की राजकीय व्यवस्था में भी इसी तरह का दावा किया जाता है। गरीबों का भले का नारा सर्वत्र प्रचलित है। इस स्थिति में मध्यम वर्ग का संघर्ष सभी जगह बढ़ गया है।  अमेरिका सहित पश्चिम देशों में अभी तक गरीब और अमीर के बीच मध्यम वर्ग कुछ समय तक अपनी कमाई पर जीवित रहा पर अब वह ऋण के जाल में फंसने के बाद अपना स्तर बचाये रखता है।  हमारे यहां भी मध्यम वर्ग पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ पर पहले उसके पास थोड़ी बहुत अपनी संपत्ति होती थी पर बैंकों से आसान शर्तों पर ऋण के जाल में फंसता जा रहा है।
            हम यहां मध्यम वर्ग का अर्थशास्त्र की दृष्टि से नहीं वरन् समाज शास्त्र के आधार पर विचार कर रहे हैं।  हम यह नहीं करते अगर हमारे यह धर्म और जाति के आधार समाज की रक्षा का दावा करने वाले नहीं संगठन तथा शिखर पुरुष नित प्रतिदिन अपने कार्य का प्रचार नहीं करते होते। हमारे देश के अनेक अर्थशास्त्री प्रत्यक्ष कर के दायरे मे अधिक करदाता लाने की बात करते हैं पर जितने हमारे यहां कर लगते हैं उसे देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता कि कोई कर से बच नहीं पाता।  जो गरीब बचता भी होगा वह कहीं न कहीं अपनी रक्षा का कर निजी शक्तियों को देता ही है।  हम यहां धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र के आधार पर काम करने वाले कथित शिखर पुरुषों को बता दें कि उनके प्रयास तब तक सफल नहीं होंगे जब तक मध्यम वर्ग स्थिर नहीं रहेगा। जिस तरह रुपये की कीमत का हृास हुआ उसे देखते हुए तो अनेक मध्यम वर्गीय परिवार निम्न वर्ग में पहुंच गये हैं।  एक समय वह अपने समाज की शक्ति थे और आज अपने अस्तित्व के लिये जूझ रहे हैं।  स्थिति यह है कि मध्य श्रेणी के व्यवसायियों के बच्चे अब अपना पैतृक काम ही नहीं करना चाहते-अगर कर रहे हैं तो अपने बुजुर्गों की तरह उनमें श्रद्धा का अभाव दिखता है।  मॉल संस्कृति ने मध्यम वर्ग के व्यवसाय के अस्तित्व के अस्तित्व पर  संकट खड़ा कर दिया है।
            हम अक्सर किसानों की आत्महत्याओं की चर्चा करते हैं पर धनाभाव या ऋण की वजह से मध्यम वर्ग में हुई इस तरह की घटनाओं पर दृष्टिपात नहीं करते। रॉबिनहुडीय राजकीय प्रबंध व्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों में मध्यम वर्ग का अस्तित्व पर भारी संकट खड़ा कर दिया है। हमारे यहां कार्ल मार्क्स के सिद्धांतो के मानने वाले और उसका विरोध करने वाले भी बहुत हैं।  उसने भी समाज को केवल निम्न और धनिक वर्ग दो ही भागों में बांटकर अपने पूंजी ग्रंथ की रचना की।  मजे की बात यह है कि धनिक उसके विरोधी हैं तो गरीबों के पास उस पर विचार करने का समय नहीं है जबकि मध्यम वर्गीय बौद्धिक उसकी विचारधारा के संवाहक हैं।  यह बौद्धिक विभिन्न समाजों के बीच वैसी ही अपनी भूमिका देखना चाहते हैं जैसी सर्वशक्तिमान के विभिन्न रूपों के प्रचारकों की होती है। यह लोग राज्य प्रबंध को रॉबिनहुड के रूप में देखना चाहते हैं।  यह अलग बात है कि उनके विपरीत चलने वाले विचारक भी इसी तरह का विचार रखते हैं। हम यह भी मानते हैं कि यह रॉबिनहुडीय आर्थिक प्रबंध  दिखावा है वरना तो अमीरों के पास इतनी दिव्य शक्तियां आ गयी हैं कि वह तप, योग तथा ज्ञानार्जन से नहीं हो सकती।  हम यहां किसी से याचना नहीं कर रहे पर यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि रॉबिनहुडीय व्यवस्था में मध्यम वर्ग के हारने से कोई भी जातीय, भाषाई, क्षेत्रीय तथा धार्मिक समूह एक इकाई के रूप में बचा नहीं रह सकता।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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