हमारे देश में धार्मिक, सामाजिक तथा साहित्यक क्षेत्र के लोगों के पास प्रचार में लोकप्रियता
प्राप्त करने के लिये महिलाओं के हितचिंतक दिखने की सहज प्रवृत्ति देखी जाती है। वैसे तो कहा जाता है कि समाज पुरुष प्रधान है पर यह भी माना जाता है
कि अंततः परिवार के अंदर महिलाओं का प्रभाव कम नहीं होता। यह प्रभाव इतना होता है कि महिलाओं को प्रभावित कर
समूचे परिवार पर नियंत्रण किया जा सकता है। यही कारण है कि धार्मिक तथा सामाजिक पेशेवर सदैव ऐसे संदेश देते हैं जिससे महिलायेें
प्रभावित हों। हमारे यहां महिलाओं के विकास, सुरक्षा तथा सामाजिक बराबरी का दर्जा दिलाने का नारा प्रचलित हैं। कहीं बाल, वृद्ध तथा असहायों की मदद के नारे भी लगते हैं पर
महिलाओं के
हित चिंतक नारे सहजता से बाज़ार में बिक जाते हैं इसलिये ही प्रचार के माध्यम से अपना पेशा
चलाने वाले लोग इसका उपयोग करते हैं।
आजकल महिलाओं की सुरक्षा की बात अधिक की जा रही है पर इस बात पर कोई चर्चा नहीं करता कि सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त वैमन्यस्य ही नर नारी दोनों के लिये संकट का कारण है। आक्रमण का भय सभी में व्याप्त है। दूसरी समस्या यह है कि अपराधियों के राजदंड का भय नहीं रहा। ऐसे में अगर पुरुष की रक्षा नहीं हो सकती तो महिलाओं की सुरक्षा कैसे हो जायेगी यह तो नारे लगाने वाले ही बता सकते हैं?
एक मजेदार बात यह है कि सार्वजनिक स्थानों, सड़कों तथा शैक्षणिक संस्थानों में कैमरे लगाकर महिलाओं की रक्षा करने का दावा इस तरह किया जा सकता है जैसे निर्जीव बुत विद्युत संपर्क होने पर रोबोट बनकर महिलाओं की रक्षा कर लेंगे। सभी जानते हैं कि नर या नारी पर जब कोई दैत्य आक्रमण करता है तो उसे रोकने के लिये उसे स्वयं या अन्य पुरुष को दैहिक पराक्रम प्रकट करना ही होता है। घटना के बाद कैमरे से अपराधी की पहचान कर उसे ढूंढने में भी पराक्रम चाहिये। यह पराक्रम मानवीय शक्ति के बिना संभव नहीं है। अपराध के विरुद्ध पराक्रम ही उपाय है। हमारे यहां इसी का अभाव है। पराक्रम प्रकट करने के लिये समाज के लोगों के पास दैहिक शक्ति, पराक्रम तथा उसके उपयोग की बुद्धि का होना आवश्यक है। अगर समाज में पराक्रमी लोगों की संख्या अधिक हो तो नर के साथ नारी भी रक्षित हो सकती है वरना तो जो हो रहा है वह हो ही रहा है। मानवीय पराक्रम की प्रेरणा देने के लिये प्रयास न करते हुए अनेक शिखर पुरुष केवल सतही उपायों की बात करते हैं।
इस तरह के पराक्रम में जिस प्रेरणा की आवश्यकता है उसके लिये समाज में आर्थिक दृढ़ता, वैचारिक पवित्रता तथा सामाजिक सामंजस्य की आवश्यकता है। हम इन तत्वों का अभाव देख रहे हैं। हमारे यहां पेशेवर विद्वानों के पास अभिव्यक्ति के माध्यम उपलब्ध हैं पर अपने सतही नारों के माध्यम से वह उसका सीमित उपयोग ही कर पाते हैं। कोई समूचे समाज और राष्ट्र की सुरक्षा की बात नहीं करता क्योंकि उससे लोकप्रियता नहीं मिलती। इसलिये महिलाओं की सुरक्षा के नारे तथा बहसों पर व्यर्थ बहस होती दिखती है।
आजकल महिलाओं की सुरक्षा की बात अधिक की जा रही है पर इस बात पर कोई चर्चा नहीं करता कि सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त वैमन्यस्य ही नर नारी दोनों के लिये संकट का कारण है। आक्रमण का भय सभी में व्याप्त है। दूसरी समस्या यह है कि अपराधियों के राजदंड का भय नहीं रहा। ऐसे में अगर पुरुष की रक्षा नहीं हो सकती तो महिलाओं की सुरक्षा कैसे हो जायेगी यह तो नारे लगाने वाले ही बता सकते हैं?
एक मजेदार बात यह है कि सार्वजनिक स्थानों, सड़कों तथा शैक्षणिक संस्थानों में कैमरे लगाकर महिलाओं की रक्षा करने का दावा इस तरह किया जा सकता है जैसे निर्जीव बुत विद्युत संपर्क होने पर रोबोट बनकर महिलाओं की रक्षा कर लेंगे। सभी जानते हैं कि नर या नारी पर जब कोई दैत्य आक्रमण करता है तो उसे रोकने के लिये उसे स्वयं या अन्य पुरुष को दैहिक पराक्रम प्रकट करना ही होता है। घटना के बाद कैमरे से अपराधी की पहचान कर उसे ढूंढने में भी पराक्रम चाहिये। यह पराक्रम मानवीय शक्ति के बिना संभव नहीं है। अपराध के विरुद्ध पराक्रम ही उपाय है। हमारे यहां इसी का अभाव है। पराक्रम प्रकट करने के लिये समाज के लोगों के पास दैहिक शक्ति, पराक्रम तथा उसके उपयोग की बुद्धि का होना आवश्यक है। अगर समाज में पराक्रमी लोगों की संख्या अधिक हो तो नर के साथ नारी भी रक्षित हो सकती है वरना तो जो हो रहा है वह हो ही रहा है। मानवीय पराक्रम की प्रेरणा देने के लिये प्रयास न करते हुए अनेक शिखर पुरुष केवल सतही उपायों की बात करते हैं।
इस तरह के पराक्रम में जिस प्रेरणा की आवश्यकता है उसके लिये समाज में आर्थिक दृढ़ता, वैचारिक पवित्रता तथा सामाजिक सामंजस्य की आवश्यकता है। हम इन तत्वों का अभाव देख रहे हैं। हमारे यहां पेशेवर विद्वानों के पास अभिव्यक्ति के माध्यम उपलब्ध हैं पर अपने सतही नारों के माध्यम से वह उसका सीमित उपयोग ही कर पाते हैं। कोई समूचे समाज और राष्ट्र की सुरक्षा की बात नहीं करता क्योंकि उससे लोकप्रियता नहीं मिलती। इसलिये महिलाओं की सुरक्षा के नारे तथा बहसों पर व्यर्थ बहस होती दिखती है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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