भारतीय प्रचार माध्यमों को बिना मांगे यह हमारी तरफ से सलाह है कि वह
कश्मीर के कतिपय अलगाववादियों की क्रियाओं का प्रचार कर उन्हें खलनायक की भूमिका
के साथ प्रसिद्ध न बनायें। जिस तरह फिल्मों में खलपात्र का अभिनय करने पर भी अभिनेता का नाम होता ही उसी तरह
कतिपय अलगाववादी भी संभवत प्रचार के लिये ऐसे काम करते हैं कि भारतीय प्रचार
माध्यमों में उनको जगह मिले और भारतीय जनमानस हताश हो। सच बात तो यह है कि भारत का आम दर्शक इस बात से
नहीं नाराज कि कश्मीर के अलगाववादी देशद्रोह के काम कर रहे हैं बल्कि उसे इस बात
पर गुस्सा आता है कि भारतीय प्रचार माध्यम अपना विज्ञापन समय पास करने के लिये
उनकी क्रियाओं का प्रचार करते हैं। एक
अध्यात्मिक ज्ञान साधक के नाते अपने अभ्यास से हमने यह सीखा है कि किसी विषय पर
उपेक्षासन करना बेहतर रहता है। कई झगड़ों
में मौन हथियार का काम करता है। भारतीय
प्रचार माध्यमों में सक्रिय बौद्धिक पता क्यों इन खलनायकों को प्रचार देकर भारतीय
जनमानस को उद्वेलित करते हैं।
अगर इस तरह कश्मीर के अलगाववादियों को भारतीय प्रचार माध्यम प्रचार देते
रहे तो वह समाचारों के प्रति निष्पक्षता की वजह से नहीं वरन् देशभक्ति के भाव
निरपेक्ष भाव रखने का संदेह भारतीय जनमानस कर सकता है। हमारा मानना है कि उपेक्षासन के माध्यम से ही
इन कथित सफेदपोश कायर योद्धाओं से निपटा जा सकता है। यह नुस्खा आजमा कर तो देखें।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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