प्रचार प्रबंधक देर रात घर आया। अगले दिन सुबह देर तक सोता रहा। पत्नी ने
बहुत आवाज दी पर वह उठ नहीं रहा था। घर में काम करने वाली बाई ने स्वामिनी से कहा-‘‘साहब के पलंग के पास जोर से स्टील की कटोरी पटक दो। उसकी आवाज से उठ
जायेंगे।’
स्वामिनी ने पूछा-‘‘ऐसा क्यों?
बाई ने कहा-‘‘आपकी आवाज तो रोज ही सुनते हैं पर बाकी आवाजों
की आदत नहीं है। स्टील की कटोरी की आवाज अलग होगी। साहब के दिमाग में हमेशा ही अपने प्रचार उपक्रम
के लिये कुछ अलग करने का विचार रहता है।
इसलिये उसकी आवाज की धमक उनके दिमाग को उत्तेजित कर सकती है।’’
गृहस्वामिनी ने उसकी बात मान ली और स्टील की कटोरी उसके पलंग के पास जाकर
दे मारी। उसकी आवाज से प्रचार प्रबंध जाग
गये और तत्काल पलंग से उतरकर खड़े हो गये। अपनी पत्नी से बोले-भागवान, मेरा मोबाइल ले आओ।
मेें अपने कार्यालय में प्रातःकालीन संपादक से बात कर उसे सचेत करना चाहता हूं कि
फिर भूकंप आ गया है। वह अपने कर्तव्य
स्थान पर सजग होकर भूकंप भूकंप करता रहे और बीच में ब्रेक लेकर विज्ञापन चलवाये।’
पत्नी ने कहा-‘‘मगर भूकंप कहां आया है?’’
प्रचार प्रबंधक ने कहा-‘‘लगता है तुम बहरी हो गयी हो। मैं आवाज सुंनकर
नींद से खड़ा हो गया और तुम जागते हुए भी सो रही हो।’
पत्नी ने कहा-‘‘पर यह तो तुम्हें नींद से जगाने के लिये कटोरी
ज़मीन पर फैंकी थी। यह आईडिया मुझे इस बाई ने दिया था।’’
प्रचार प्रबंधक नाराज हो गया और बोला-‘‘तुमने मेरे दिमाग का कचड़ा कर दिया। मैं कितना खुश हो गया था कि आज विज्ञापन
का समय पास करने के लिये हो जायेगा पर तुमने हवा निकाल दी।’’
ऐसा कहकर वह फिर सो गये। गृहस्वामिनी ने काम वाली बाई से कहा-‘‘अब क्या करें?’’
काम वाली बाई न कहा-‘‘अगला भूकंप करने का इंतजार!
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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