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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/6/15

प्रातःकाल ही दिन भर की ऊर्जा का संग्रह करें-हिन्दी चिंत्तन लेख(pratkal he din bhar ka sangrah karen-hindi thought article)


गरीबों की चिंता करना फैशन बन गया  है या उसे व्यक्त करना, यह कहना कठिन है मगर प्रचार माध्यमों से अपनी छवि बनानी है तो व्यक्त करना ही बहुत है। टीवी पर सब्जी महंगी होने पर आमजनों के साक्षात्कार दे रहे थे।  शहरों में मध्यम वर्ग भी सब्जी खरीदने के लिये मंडी जाता है फिर उसका पहनवा ही ऐसा होता है कि टीवी पर उसका चेहरा दिखाने के लिये सौंदर्य प्रसाधन तथा कार्यकर्ता की आवश्यकता नहीं होती।  बहरहाल मध्यमवर्गीय लोग टीवी के सामने साक्षात्कार देते हुए सब्जी के महंगे होने पर रुंआसा होते हुए गरीब कैसे खा सकता है’, गरीब कैसे खायेगातथा गरीब के लिये तो जीना कठिन है’, जैसे जुमले  भी सुना रहे थे। आजादी की लड़ाई के दौरान गरीब से उद्धार भी एक नारा था। आजादी के बाद भी यह नारा चलता रहा और लगता है अब यह पूरे देश के खून में घुल गया है।
मध्यम वर्ग स्वयं कम संघर्ष नहीं करता पर उसे अपने गरीब होने का अहसास नहीं होता। हमारा मानना है कि नये आर्थिक परिवेश में अनेक मध्यम वर्गीय परिवार गरीब की श्रेणी में आ गये हैं पर मानते नहीं है। वह निरंतर अमीरों के कार्यकलापों से होड़ करने के लिये कर्जे लेते हैं और अंततः हार जाते हैं।  बहरहाल यह गर्मी का दौर अक्टूबर तक चलना है। सब्जियां महंगी होते हुए लापता होने की स्थिति में आ सकती हैं-यहां तक कि जेब में पैसा हो और बाज़ार में उनका अभाव इतना हो कि देखना भी कठिन हो जाये। यह अलग बात है कि हमारी धरती उपजाऊ है-विश्व में भूमि का जलस्तर की दृष्टि भारत का स्थान बहुत अच्छा है-इस कारण पूर्णतः कभी अकाल नहीं होता। दोपहर की गर्मी जरूर डरावनी होती है पर प्रातःकाल जल्दी उठकर सैर सपाटा या योग साधना की जाये तो फिर दिन भर के लिये देह में ऊर्जा एकत्रित की जा सकती है। कहा जाता है कि किसी कार्य की शुरुआत अच्छी हो तो अंत भी अच्छा ही होता है।
अगर गर्मी में सुबह की प्रातःबेला में शीतल हवा का स्पर्श हो जाये तो फिर दिन में गर्मी यह सोचकर झेली जा सकती है कि जब वह नहीं रही तो यह भी नहीं रहेगी।  जब तक जिंदगी है संघर्ष करना ही है।  चिंता तो चिता की मनुष्य के लिये चिता समान हैं और चिंत्तन उस चेतना का जन्मदाता है जो हर प्रकार की स्थिति के लिये तैयार करती है। इसलिये कम से कम सुबह तो मन, वाणी और इंद्रियों को मौन रखकर अपनी अध्यात्मिक शक्ति बढ़ानी चाहिये न कि नींद से उठते ही जीवन के विषयों का स्मरण किया जाये जो वैसे ही सारे दिन परेशान करने वाले होते हैं। जय श्री कृष्ण!
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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