हमने बचपन में अनेक ऐसी कथायें पढ़ी थी कि अमुक राजा ने गरीब आदमी को देखकर उसे अमीर बनाया। बेबस स्त्री को संकट से बचाया। अनेक राजा जनता दरबार लगाते थे आदि आदि यह कहानियां शायद राजपद की महिमा में लिखी गयी हों पर अब लगता है कि यह बकवास है। इसी तरह आज भी यही हो रहा है पर प्रश्न यह है कि इन राजपद पर विराजमान लोगों के संवदेनशील होने पर खुश होने की बजाय इस पर विचार करना चाहिये कि उनके राजकर्मचारी इतने कुशल क्यों नहीं है कि जनता के पास शिकायतें करने का अवसर ही न हो। लोकतांत्रिक प्रणाली में अब यह स्थिति हो गयी है कि जनप्रतिनिधि राज्य के स्वामी हो गये हैं पर उनकी सोच भोग तक ही सीमित है। फलां राजपदधारी संवेदनशील है-यह प्रचार खोखला लगता है। आखिर यह पदासीन लोग अपने अनुचरों को संवदेनशील होकर कुशल से कार्य करने के लिये प्रेरित क्यों नहीं करते ताकि पूरे समाज का भला हो सके-एक दो व्यक्ति का भला कर वह प्रशंसा जरूर बटोरते हैं पर इससे यह प्रमाणित होता है कि उन्हें अपने अनुचरों में राजकाज में कुशल प्रबंधन तथा कार्य की प्रेरणा स्थापित करने की योग्यता नहीं है। हम तो अब सोचते हैं कि एक राजा ने एक का भला किया तो क्या तीर मार लिया? हमारा मानना है कि राजा कितना भी बुद्धिमान, संवेदनशील और धर्मभीरु हो अगर वह सामान्य जनमानस के अर्थ की सिद्धि नहीं करता तो प्रशंसायोग्य नहीं होता।
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हिन्दूत्व पर निर्णय स्वागत योग्य
सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दुत्व को जीवन शैली मानने के अपने निर्णय पर अपनी स्थिति बरकरार रखी है। इसका मतलब यह है कि धर्म का नाम लेकर हिन्दूओं को गाली देने वाले अत्यंत कठिनाई अनुभव करेंगे। दूसरी समस्या प्रगतिशील और जनवादियों के सामने तब आयेगी जब मिलती जुलती जीवन शैली के कारण अन्य धर्मों के लोगों को हिन्दूत्व अपने जैसा ही बतायेंगे। वैसे हम बता दें कि हिन्दूत्व के साथ सिख, जैन और बौद्ध धर्म का भी इस मायने में सीधा जुड़ जायेगा क्योंकि इनके अनुयायियों की जीवन शैली भी भारतीय परंपराओं से जुड़ी है। महत्वपूर्ण बात यह कि राष्ट्रवादियों के शाब्दिक प्रहार पहले से अधिक जोरदार होंगे जिसे झेलना पंथनिरपेक्षों के लिये अत्यंत कठिन होगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने उस निर्णय को बदलने से इंकार कर दिया है जिसमें हिन्दूत्व को धर्म नहीं वरन् जीवन शैली बताया था। हिन्दुत्व विरोधियों के लिये यह बड़ा झटका होगा क्योंकि वह धर्म का नाम देकर इसे चाहे जब शाब्दिक लट्ठ मारने लगते थे। सबसे बड़ा झटका उन्हें इस बात से लगेगा जब जीवन शैली और अध्यात्मिक दर्शन के के कारण हिन्दुत्व पंथनिरेपक्षता यानि किसी भी विशेष पूजा पद्धति से जुड़ा न होने के कारण अलग ढंग से प्रचारित होगा।
बढ़िया चिंत्तक है जो अध्ययन के लिये आये विषय का संपूर्ण अध्ययन करता है। एक चिंत्तक को किसी भी विषय के ऊपरी या निचले स्तर से अपना अध्ययन करना चाहिये। आपने एक बार अपने घर के बाहर गड्ढे के बारे में लिखा था। अच्छा लगा क्योंकि वह चिंत्तन को नीचे के सिरे से देखने का प्रक्रिया थी। विकास का अंतिम सिरा वहीं है जहां हम हैं।
अब आते हैं सार्वजनिक विषयों पर विचार की प्रक्रिया पर जिसमें कभी ऊपरी सिरे से दृष्टिपात करना चाहिये। कैसे? हम बताते हैं।
विश्व की सबसे ताकतवर संस्था कौनसी है?
हम ही जवाब देते हैं ‘विश्व बैंक’-आज अंतर्जाल पर एक संदेश पढ़ा जिसमें बताया गया कि उसने चीन को झुका दिया था।
अब हमारा चिंत्तन यहीं से शुरु हुआ जो विकीलीक्स और पनामलीक्स तक आता है। पनामा लीक्स में हमारे प्रिय मित्र पुतिन के साथ दुश्मन नवाज शरीफ तो कभी खुशी और कभी गम देने वाले शी जिनपिंग का भी नाम है। अनेक भारतीय उद्योगपतियों के भी इसमें नाम होने की संभावना है। हमारा मानना है कि काला धन रखने वाले पश्चिमी बैंक भी विश्व बैंक जैसी नहीं तो उसके बाद दूसरी ताकत हैं। अपना चिंत्तन तो यह कहता है कि जनता के सामने बहिष्कार का नारा कमरे के अंदर व्यापारिक समझौते भी मारा होता है। पुतिन इसी पनामा लीक्स से बचने के लिये अमेरिका से परमाणु बम की धमकी दे रहे हैं तो चीनी शीजिनपिंग इधर उधर विदेशों में जाकर अपनी ताकत अपने ही देश को लोगों को दिखा रहे हैं। नवाज शरीफ ने अपना नायक कश्मीर के मृत आतंकवादी को इसलिये ही बनाया ताकि आम जनता पनामा लीक्स का अपराध भूल जाये। कहना यह है कि भारत के उद्योगपतियों को लेकर परेशान न हों इस समय उनकी पूरे विश्व में तूती बोलती है और शी जिनपिंग तो उनके सामने एक खरगोश है। कालेधन रखने वाले बैंक के ग्राहक आपस में वैसे ही मित्र होते होंगे। एक दूसरे के दुश्मन भले दिखें पर न हानि करेंगे न युद्ध! सब ऐसे ही चलता रहेगा।
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3 comments:
Nice.
Aapka chintan bahut sundar hai ....dr.o.p.vyas guna m.p.b
Ati sundar ...dr.vyas. O.p.
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