अंग्रेजी के सीएनएन व बीबीसी देखना हिन्दी चैनलों की अपेक्षा अच्छा क्यों लगते है? जवाब भी हम देते हैं कि घर मोहल्ले की कलह से ऊबा आदमी दूसरे घर मोहल्ले में फसाद का आनंद लेता है। यही अंग्रेजी जानने वाले उन पाठकों का भी हो सकता है जो समाचारों और बहसों में रुचि लेते है। हमारे यहां समाचारों और बहसों की धारा में वंशवाद, परिवारवाद और भाई भतीजावाद आ गया है। राजनीति के शिखर परिवारों के लिये सुरक्षित है। पहले दादा देखा अब पोता देखो। पिता देख अब पुत्र देखो। नाम बदले हैं उपनाम वही है। सो बोरियत तो होती है। वैसे सीएनएन और बीबीसी भी रुचिकर नहीं लग रहे थे पर अब ट्रम्प ने धूंआधार बैटिंग कर उसमें रुचि पैदा की है।
कभी कभी बीच में देसी हिन्दी अंग्रेजी समाचार चैनल देखते हैं तो वही पुराने उपनाम सामने आते हैं-उनके कथनों के समाचार फिर उन पर बहस! यार, हम समाचार और उन पर बहस का रस लेने के इतने आदी हो गये हैं कि फिर भी कुछ दिन तो समाचार चैनल बहुत कम देखने लगे थे। अब ट्रम्प ने नये रस का स्वाद दिलाया है-यह रस अंगेजी में है पर हम समझ लेते है।
पहली बार हमें पता लगा कि अमेरिका की ताकत वहां के मूललोग नहीं वरन् समय समय पर वहां आये शरणार्थी हैं। बड़े बड़े दिग्गज जिन्होंने अमेरिका का नाम रोशन किया वह अमेरिका के मूल निवासी नहीं थे। यहां तक कि ट्रम्प की पत्नी भी वहां के मूल की नहीं है। यही कारण है कि अनेक लोगों ने ट्रम्प का मजाक उड़ाया है कि अगर शरणार्थियों का आना अमेरिका नहीं होता तो उनकी शादी कैसे होती? वैसे यह मजाक उस अतिवाद से प्रेरित है जिसके वशीभूत सामाजिक तथा मानवाधिकार संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। जिन सात देशों पर प्रतिबंध लगाया है वहां ईसाई भी भारी संख्या में है इसलिये केवल मुसलमानों पर प्रतिबंध की बात गलत है। मजे की बात यह कि जिस तरह भारत के पत्रकार हैं वैसे ही अमेरिका में भी हैं जो ट्रम्प के प्रतिबंध को मुसलमानों से जोड़ रहे है।
जिस तरह असहिष्णुता के मुद्दे पर भारतीय प्रचार माध्यम वर्तमान सरकार के पीछे पड़े थे उसी तरह अमेरिका में भी हो रहा है। जबकि हमारा मानना है कि किसी महत्वपूर्ण विषय पर बेसिरपैर के निष्कर्ष निकालने की जो प्रचार माध्यमों की आदत है वह दोनों जगह दिखाई दे रही है। ऐसा लगता है कि प्रचार माध्यमों के स्वामी भयवश ऐसे मुद्दों पर सरकारों को उलझाते हैं जिससे जनहित भले ही न हो पर सरकारें दबाव में रहें ताकि उनके संगठनों के कालेपक्ष सामने न आये। ट्रम्प तो खुल्लमखुल्ला प्रचार माध्यमों को झूठा कह दिया है ऐसे में प्रचार संगठनों के स्वामी-जो पर्दे पर नहीं दिखते-घबड़ाये हुए हैं इसलिये ही एक हल्के विषय पर ट्रम्प को घेर रहे हैं ताकि वह आगे न जायें। गये तो प्रचार स्वामियों को भी निगल सकते हैं। अमेरिकी समाचार चैनल देखकर हमने यह महाज्ञान प्राप्त अनुभव किया है। अब यह पता नहीं यह सिद्ध है कि नहीं। बहरहाल हम चाहते हैं कि ट्रम्प प्रतिदिन कोई नया विवादास्पद निर्णय करें ताकि हमारा बौद्धिक विलास चलता रहे। अब हिन्दी नहीं तो अंग्रेजी में ही सही, सब चलेगा।
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