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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

4/23/17

तमिलनाडू के किसानों के आंदोलन पर ध्यान न देना शर्मनाक-हिन्दी संपादकीय (No attension Gives to tamilnadu Farmers Agitation is Very Shemful f;or Government)

           अगर हम देश के राजकीय व्यवस्था को एक देह माने तो सरकार का सिर मुख व मुख प्रधानमंत्री होता हे और अंत में चरण की उंगलियां पटवारी, पोस्टमेन और पुलिसमेन होता है। आदमी कितना भी सुंदर व ताकतवार दिखे पर उसकी चरण की उंगलियां नही है या लड़खड़ा रही हैं तो चलना तो दूर वह खड़ा भी नहीं रह सकता।  हमें यह देखना चाहिये कि हमारी राज्य व्यवस्था की अंतिम स्थिति क्या है? अर्थतंत्र में मजदूर व श्रमिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है-हालांकि वह भी चरण की उंगलियां हैं।  अब हम समूचे देश के मनोबल का हाल जाने तो पता लगेगा कि जिनके हिस्से परिश्रम का काम है उन्हें आज भी सम्मानीय नहीं माना जाता है।  सभी को यह लगता है कि मेहनत करने वाले जरूरत से ज्यादा मांग करते हैं। यह भी माना जाता है कि ऐसे लोगों को केवल रोटी खानो के अलावा अन्य कोई मन की बात सोचना भी नहीं चाहिये।  
                            ऐसे में हम भले ही देश के विकास का कितना भी ढोल पीट लें हमारे समाज की सच्चाई कभी छिप नही सकती यही कारण है कि कोई भी विदेश हम पर गरीबी व भुखमरी का ताना कस देता है। तमिलनाडु के किसान इतने दिन से दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं पर लगता नही है कि किसी को उनसे हमदर्दी हो-दया शब्द हमें बड़ा भयावह लगेगा क्योंकि इसकी जरूरत तो पद, पैसे और प्रतिष्ठा के शिखर पुरुषों को है जो सदैव पतन की आशंकाओं से भयाक्रांत हैं।  ऐसा लगता है कि किसानों,  मजदूरों और छोटे व्यापारियों को ठीक उसी तरह ही व्यवस्था का प्रयोक्ता मानकर हेय श्रेणी दी गयी है जैसे कि प्रचार माध्यम सोशलमीडिया पर सक्रिय विचारकों को देता है-उसकी नज़र में यहां सब मामूल लोग हैं क्योंकि वह किसी प्रचार संगठन में गुंलामी नहीं करते। अंत में हम इतनी चेतावनी देते हैं कि हमारे वर्तमान शिखर पुरुष वैसी ही गलतियां कर रहे हैं जैसे कि प्राचीन काल में हुईं और जिस कारण हमारा देश सदियों गुलाम रहा।

                                  हमें सोचते है। कि तमिलनाडू के किसान जब इतने दिन से आंदोलन कर रहे हैं तो कोई तो वजह होगी। आखिर पीड़ायें इतनी होंगी कि वह इस भरी गर्मी में आंदोलन कर रहे हैं। यह शर्म की बात है कि इतने दिनों से कोई भी कुछ नहीं कर रहा है।
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                   भावनाओं पर चोट का बहाना लेकर अज्ञानी लोग उत्तेजना पैदा करते हैं। हमारा मानना है कि विदेशी धर्म वालों में यही कमी है कि वह आस्था की आड़ में अपनी विचारधारा और इष्ट पर बहस से बचते हैं।  हम कभी यह नहीं कहेंगे कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण पर आपका विचार क्या है क्योंकि हमें पता है कि आपने पूर्ण अध्ययन नहीं किया है। 

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