भीड़ में चिल्लाने से अच्छा उदास हो जायें, लोगों से दूर अपने ही पास हो जायें।
‘दीपकबापू’ दर्द हो बनाया बिकने का सामान, आओ अपने स्वयं ही खस हो जायें।।
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अपने लिये रुपये सभी को कमाने हैं, भल्ला बेचें या भला धंधे उन्हें जमाने हैं।
‘दीपकबापू’ वादे करते नारे भी बहुत सुनाये, इंसान शिकारों की तरह लुभाने हैं।।
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सभी को पराये झगड़े पर मजा आता है, गैर गिरे तो हर कोई ताली बजाता है।
‘दीपकबापू’ भौतिक जाल में फंसाये अक्ल, वही फटे में टांग डाल सजा पाता है।।
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ज़माने की भलाई का शोर करते हैं, निरर्थक बातों से सभी को बोर करते हैं।
‘दीपकबापू’ मन बहलाते वादे और नारे से, शब्दों में पत्थर जैसा जोर भरते हैं।।
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जोगी जिंदगी में महल लगें कैदखाने, असिद्ध जाते अंदर सिद्धि का सौदा लगाने।
‘दीपकबापू’ मायाजाल में फंसाया उन्मुक्त भाव, चले बाज़ार त्यागी छवि चमकाने।।
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सच्चे योगी
राजनीति शास्त्र नहीं पढ़े हैं,
राजपदों पर शान से चढ़े हैं।
‘दीपकबापू’ दिल के सौदे में
जज़्बात पथरीली सोच में मढ़े हैं।
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झूठों ने भी तकदीर बदली है,
हारे पर सच्चे की पीर पगली है।
‘दीपकबापू’ शब्दों में बहकते नहीं
मक्कारों की लालच ठग ली है।।
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छाया पर भरोसा सदा न किया करो
कभी धूप से भी लड़ लिया करो ।
‘दीपकबापू’ निकालकर पसीना
उसकी खुशबू में भी जिया करो।
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घाव सहलाने का मजा लेने दो
हमारा खून बहते जाने दो।
हमें लड़ाई का मजा लेने दो यारों
मुश्किलों को ऐसे ही न जाने दो।
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उमस का मौसम बंद हवायें
आओ कुछ पल उदास हो जायें।
‘दीपकबापू’ कब तक तक रहे बदहवास
आओ अकेले में अपने पास हो जायें।
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