दोस्त हम ऐसा चाहें
जो वक्त पर काम आये
पर कितना सोचते हैं कि
हम दोस्तो के काम आयें
ऊपर से लेकर नीचे तक
खुदगर्जी भरी है खुद में
फिर क्यों दुसरे से वफ़ा की
उम्मीद हम लगाएं
वक्त पर काम आने का वादा
हर समय वफादारी करने की
क़समें उठाना आसान है
किस्मत ही समझो अपनी
जो कौई और हम से
या हम ही किसी से निभाएं
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प्यार से धोखे का
दोस्ती से गद्दारी का
ईमान से बैईमानी का
अगर रिश्ता न होता
तो कौन निभाने की क़समें खाता
विश्वास, वफ़ा और नेकनीयती का
मोल क्या रह जाता
फिर भी तुम प्यार, दोस्ती और ईमान का
दामन कभी नहीं छोड़ना
और इन्सान चाहे शैतान बन जाएँ
चाहें कितने भी ठोकरें लगाएं
सारी उम्मीदें छोड़कर अपनी
शख्सियत पर इंसानियत ओढ़े रहना
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उसने नहीं निभाया
मैं भी नहीं निभाऊंगा
यह सोचकर दगा कभी नहीं करना
हालात आदमी को वफादार और
गद्दार बनाती है
भूख आदमी को बैईमान और
मिटटी से बने शरीर की
मिटटी से बने शरीर की
कई मजबूरियों को समझ लो
अपने धर्म पर अटल रहना सीख लो
रंग बदलती इस दुनियां में
नीयत हर पल बदल जाती है
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