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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/5/07

अमेरिका और भारत का बोस पुराण एक जैसा

अमेरिका में किये तो गये ऐक सर्वेक्षण के अनुसार उस बोस को बहुत जल्दी तरक्की मिलती है जो अपने मातहतों का जीना हराम किये रहता है-मुझे इस पर ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ वजह! मानव प्रवृति सब जगह ऐक जैसी रहती है। जो बोस को तरक्की देते हैं वह बोस से बडे होते हैं और हर बडे व्यक्ति का यह स्वभाव रहता है कि छोटे को निम्न और बैईमान समझता है- जो व्यक्ति बोस के पद पर प्रतिष्ठत होता है उस अपने मातहतों पर जुर्म करना ही होता है ताकि वह अपने मालिक या कंपनी को जता सके कि वह भी एक बड़ा आदमी है।


हर मालिक के नजर में नौकर कामचोर और बैईमान होता है, और इतना ही नहीं वह कितना भी काम कर मालिक के नजर में उसका महत्व नहीं होता। यह केवल मालिक और नौकर का मामला ही नहीं वरन हर क्षेत्र में यही हालत है। अमीर के हृदय में अमीर के लिये ही जगह है-गीब तो उनके लिए इन्सार्नों की जाति से अलग कोई प्राणी होता है। मजदूर अपना खून-पसीना ऐक कर देते हैं पर उनका पारिश्रमिक ऐसे दिया जाता है जैसे भीख दी जा रही हो।

ऐसा नहीं है कि यह केवल आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्रों में ही ही होता है वरन सामाजिक में भी यही हालात है। अगर कही चार रिश्तेदार मिलते हैं वहां पहले यही देखा जाता है आर्थिक स्तर में कौन कहाँ तक है और जो सबसे कम होता है उसे कम सम्मान मिलता है। कुछ मामलों में बातचीत करते हुए सतर्कता बरती जाती है कहीं वह अपने लिये सहायता के रूप में धन ना मांग ले और कहीं तो यह भी ध्यान दिया जाता है कहीं वह उनके घर का सामान ना उठाकर ले जाय। इसके अलावा उसकी मजाक भी बनाई जाती है। मतलब यह कि आर्थिक दृष्टि से छोटा व्यक्ति समाज में कहीं भी सम्मान का पात्र नहीं समझा जाता है-भले ही वह अमेरिका क्यों न हो।

आज मैने इसे विषय पर ऐक व्यंग्य कविता भी लिखी है उसके बाद मुझे यह समाचार पढ़ने को मिला जिन लोगों को भारत को अमेरिका जैसा बनाना है भले ही वह ऐसा मजाक में कह रहे हौं पर उन्हें इस तरफ अवश्य ध्यान देना चाहिये। भारत में ही नही सभी जगह यही हालत है। गरीबों और मजदूरों के मसीहा कार्ल मार्क्स ने कभी भारत के दर्शन भी नहीं किये फिर भी उसने उनके लिए लिखा इसका मतलब यह है कि ऐसा सब पश्चिमी देशो में भी होता रहा है।


मुद्दा केवल आर्थिक नहीं वरन मानवीय स्वभाव से जुडा हुआ है। हर बड़ा आदमी छोटे आदमी के ख़ून को गंदे पानी की तरह समझता है। गंदा पानी मैंने इसलिये कहा क्योंकि आजकल मिनरल वाटर के रुप में बिक रहा पानी भी इतना महंगा हो गया है कि उसे बेचने वाले भी नहीं पी पाते। अपने मातहत पर जुर्म करने वाले बोस को जल्दी प्रमोशन मिलने का सीधा मतलब यही है कि उसने गरीब और कमजोर के ख़ून को पसीने में बदलकर मालिको या कंपनी के लिए मिनरल वाटर का इंतजाम किया होगा। वैसे तो हरेक को दुसरे का ख़ून पानी की तरह लगता है पर उच्च वर्ग के लोगों के लिए निम्न वर्ग के लोगों को तो जन्मजात बंधुआ होने के लिए पैदा हुआ माना जाता है।

आप कहेंगे कि बात कहॉ से शुरू हुई थी कहाँ आकर पहुंच गयी। जनाब! आख़िर बॉस भी एक इन्सान होता है जो किसी मालिक या कंपनी का नौकर होता है जिसे अपने मातहत के बारे में सारे निर्णय करने का अधिकार सौंपा जाता है ताकि इस बारे में हुई हर बुराई के लिए उसे सीधे जिम्मेदार ठहराया जा सके। अगर वह अपने मातहत के प्रति दरियादिली दिखायेगा तो कंपनी या मालिक उसके प्रति तंगदिल हो जायेंगे। बडे आदमी की अहमियत भी तभी जानी जाती है जब वह छोटे आदमी के प्रति वह अपने शक्ति दिखाए , उसे प्रताडित करे और बिना या छोटी वजह पर बुरी तरह डांटे।


एक बोस ने अपने मातहत से कहा-"जाओ मेरे घर तक जाओ और मेरा तौलिया ले आओ।"

यह उसका काम नहीं था पर वह गया। उसने लाकर बोस को तौलिया दिया तो बॉस ने पूछा -"क्या तुम घर के अन्दर तक गये थे? मुझे घर से फोन आया था कि तुम अन्दर गये थे।"


मातहत ने कहा-"हाँ! तौलिया लेने के लिए अन्दर तो जाना पडेगा न!"


बोस ने कहा-'मैंने तुम्हें घर तक जाने के लिए कहा था न कि घर में। दूसरा यह कि तौलिया मांगकर तुम बाहर भी खडे रह सकते थे। आइन्दा ध्यान रखना।"


अगली बार बोस ने फिर उसे दूसरा सामान लेने के लिए घर भेजा और उसने वह लाकर दिया। बोस की पत्नी ने कई बार उसे घर आने के अन्दर आने के लिए कहा पर वह नहीं गया। बोस ने उससे कहा-"तुम हमारी श्रीमती के आदेश के बावजूद घर के अन्दर क्यों नहीं गये ? क्या मेरे घर के अन्दर कांटे लग रहे थे? आइन्दा ध्यान रखना।"


ऐसा कई बार हुआ। वह अन्दर जाता तो डांट खाता और नहीं जाता तो भी। वह बिचारा खामोशी से सब झेलता। आख़िर बोस की सेक्रेटरी ने बोस से पूछा-" आप हमेशा उसे डांटते रहते हैं? अन्दर जाता है तो। नहीं जाता है तो?"


बोस ने कहा-" मैं बोस हूँ । जब बाहर से मेरे सीनियर यहाँ इंस्पेक्शन के लिए आएंगे तब यह मेरी शिकायत करेगा और मेरा प्रमोशन हो जायेगा। इसकी शिकायत से लगेगा कि मैं बहुत कड़क मिजाज का आदमी हूँ। जब यह शिकायत करेगा यह मेरे घर जाने की बात भी बतायेगा तब सीनियर यही समझेंगे कि यह खुद किसी लायक नहीं है और इसलिये अपने बोस की बुराई कर रहा है।"

वही हुआ भी बोस का प्रमोशन हो गया और वह मातहत अब दुसरे बोस की सेवा भी इसी तरह करता है। मतलब यह कि भारत और अमेरिका का बोस पुराण भी एक समान है और जो लोग सोच रहे हैं कि वहाँ ऐसे बोस नहीं है वह गलती कर रहे हैं।

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