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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/12/07

स्मृतियां तो तनाव पैदा करती है

काल का विभाजन तीन प्रकारों -भूत, भविष्य, और वर्तमान-में किया गया है। इनमें भविष्य का हमें पता ही नहीं होता कि क्या होने वाला है, इसी तरह वर्तमान इतनी तेजी से भूतकाल में परिवर्तित हो रहा है कि हमें पता ही नहीं लगता कि प्रत्येक क्षण भूतकाल में चला जाता है। इसीलिये कभी-कभी सन्देह होता है कि वर्तमान काल को माना भी जाये कि नहीं। इस हालत में ले-देकर विचार करने के लिए हमारे पास भूतकाल ही रह जाता है।

अगर हम थोडा मनन करें तो लगेगा के हम तो केवल भूतकाल के बारे में ही अधिक सोचते हैं या फिर भविष्य की चिंताओं में ही खोये रहते हैं। इसलिये कहा भी जाता है कि मन के पक्षी के दो पंख है-भूत और भविष्य जिसके सहारे वह उड़ता है। अगर उसके यह दो पंख काट दो तो वह उड़ना बंद कर देगा और मनुष्य कालातीत स्थिति में पहुच जायेगा। यह कालातीत स्थिति ही स्वरूप स्थिति (आत्म साक्षात्कार ) की स्थिति है।

अगर थोडा विचार किया जाये कि किस प्रकार भूतकाल की स्मृतियों से अपने को मुक्त करें? हम भूतकाल की अपने लिए प्रिय और सुखद स्मृतियों को सदैव याद रखना चाहते और जो दु:खद स्मृतियां हैं उन्हें भूलना चाहते हैं, यह संभव नहीं है। जिस तरह हम इन्टरनेट पर कोई एक शब्द टाईप का रख दें तो उससे संबधित सारी वेब साईट आ जाती है और उनमें कई सारी हमारे काम की नहीं होती और हम उन्हें अनदेखा करने का प्रयास करते हैं। मस्तिष्क भी एक तरह से प्राकृतिक कंप्यूटर है यह हम सब जानते हैं। जब हम उसमें अपने अन्दर मौजूद स्मृतियों का बटन दबाते हैं तो वह भी स्मृतियां भी चली आती हैं जो हमें अच्छी नहीं लगती और जिनसे हमारे दिमाग में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिये हमें सब स्मृतियों को भूलना होगा-अच्छी और बुरी दोनों । महर्षि अष्टावक्र कहते हैं -'सर्वविस्मरणादृते' सब कुछ भूलना होगा। आचार्य रजनीश स्मृति को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मानते थे।

स्मृति हमेशा भूतकाल की होती है। जो बातें बीत चुकी हैं, जो विषय समाप्त हो चुके हैं, जो लोग हमारे सामने से जा चुके हैं या जिनका निधन हो गया है उन्हीं की स्मृति हमारे मानस पटल पर होती है। यह स्मृति हमेशा ही हमें परेशान करती है। भूतकाल के क्षणों में अर्थात मरे क्षणों में ही अपना समय बिताना बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती। हमारे प्रत्येक कार्य में ऊर्जा का क्षरण होता है और भूतकाल के चिन्तन और मनन में हमारी ऊर्जा व्यर्थ ही जाती है। यदि हम इसी ऊर्जा का प्रयोग ध्यान में करें तो हमें बहुत लाभ हो सकता है। हमको मन को रोकने में, ध्यान करने में बहुत ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो भूतकाल के चिन्तन में व्यर्थ चली जाती है।

अब विचार इस बात का उठता है कि हम अपनी इन भूतकाल की स्मृतियों से कैसे मुक्ति पायें।इसका उपाय यह है कि जैसे-जैसे मन में ये स्मृतियां आयें उन्हें ध्यान से देखते रहें। केवल ध्यान दें और उनके अच्छे या बुरे होने का विचार ना करें। यह नित्य ध्यान से देखें कि ये तो बीती हुईं है अर्थात यह तो मरी हुईं है इनकी अब कोई दैहिक या भौतिक सत्ता नहीं। यह तभी संभव है जब आपका चित्त शांत हो और चित्त तभी शांत रह सकता है जब हम ध्यान करें। ऐसा करने पर ही वह कालातीत अवस्था ( आत्म साक्षात्कार) की स्थिति प्राप्त होगी। यह एक सर्वश्रेष्ठ उपाय है अगर किया जाये तो जीवन में प्रसन्नता का अनुभव किया जा सकता है।

1 comment:

रवीन्द्र प्रभात said...

काल का विभाजन तीन प्रकारों -भूत, भविष्य, और वर्तमान-में किया गया है। इनमें भविष्य का हमें पता ही नहीं होता कि क्या होने वाला है, इसी तरह वर्तमान इतनी तेजी से भूतकाल में परिवर्तित हो रहा है कि हमें पता ही नहीं लगता कि प्रत्येक क्षण भूतकाल में चला जाता है।
काफ़ी गंभीर अनुभूति काल चक्र की . अत्यंत उत्कृष्ट और प्रशंसनीय भी.

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