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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/27/07

कौटिल्य अर्थशास्त्र:शत्रु पर माया,उपेक्षा और इन्द्रजाल का प्रयोग भी करें

  1. विशेष ज्ञान से संपन्न सत्त्वगुण और दैव की अनुकूलता लिए उधोग और सत असत का विचार का शत्रु पर उपाय का प्रयोग करे।
  2. चतुरंगिनी सेना को छोड़कर जहाँ कोष और मन्त्र से ही युद्ध होता वही श्रेष्ठ मन्त्र है, जिसमें कोष और मंत्री से ही शत्रु को जीता जा सकता है।

* यहाँ आशय यह है कि अगर कहीं शत्रु के की सेनाओं के साथ सीधे युद्ध नहीं हो रहा पर उसकी गतिविधियां ऎसी हैं जिससे देश को क्षति हो रही हो तो वहां धन और अपने चतुर सहयोगियों की चालाकी(मन्त्र) से भी शत्रु को हराया जा सकता है

३.साम, दाम, दण्ड, भेद, माया, उपेक्षा, इन्द्रजाल यह सात उपाय विजय के हैं।

*यहाँ कौटिल्य का आशय यह है साम, दाम, दण्ड और भेद के अलावा माया(छल-कपट और चालाकी) उपेक्षा का भाव दिखाकर और इन्द्रजाल (हाथ की सफाई) द्वारा भी शत्रु को हराया जा सकता है।

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