- मंत्री और मित्र राज्य के सहायक हैं पर राज्य के व्यसन से अधिक भारी राजा का व्यसन है।
- जो राजा स्वयं व्यसन से ग्रस्त न हो वही राज्य के व्यसन दूर कर सकता है।
- वाणी का दण्ड, कठोरता, अर्थ दूषण यह तीन व्यसन क्रोध से उत्पन्न बताये हैं।
- जो पुरुष वाणी की कठोरता करता है उससे लोग उतेजित होते हैं, वह अनर्थकारी है, इस कारण ऎसी वाणी न बोले। मधुर वाणी से जगत को अपने वश में करे
- जो अकस्मात ही क्रोध से बहुत कुछ कहने लगता है उससे लोग विपरीत हो जाते हैं जैसे चिंगारी उड़ाने वाली से अग्नि से लोग उतेजित हो जाते हैं।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
1 comment:
सचमुच आपने बहुत गंभीर बातें की है, यही सच है .
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