हर पल साथ निभाने का था वादा
हम भी अपनी उम्मीद का आकाश
उन पर टिकाये बैठे थे
अब न उनका पता लगता है
न उनके वादों के पूरे होने की
उम्मीद दिखाई देती हैं
यह दिल का खेल है जिसमें
जीत बदर्दों की होती हैं
दर्द वालों की तस्वीर और तकदीर
दोनों रोती दिखाई देती हैं
टूटने के लिए नही होते तो
वादे इस धरती पर पैदा ही क्यों होते
धोखे नहीं होते यहाँ पर
तो विश्वास के कद्रदान ही क्यों होते
जिन्दगी के इस खेल में
हँसते वही हैं जो किसी को रुलाते हैं
उनको कभी किसी तस्वीर में
प्यार और वफा नहीं दिखाई देती
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
2 comments:
bahut badiya likha hai. shukriya
पढ़कर अच्छा लगा,बहुत खूब!
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